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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेखन-कला को प्राचीनता 24, अ, 6,7) । चीन में भी एक भारतीय परंपरा सुरक्षित है, जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि ऋ की मात्रा ऋ और ळ भारतीय वर्णमाला में बाद में जोड़े गए 124 2. लेखन के प्रयोग के सम्बन्ध में साहित्यिक प्रमाण अ ब्राह्मणों का साहित्य25 वाशिष्ठ धर्मसूत्र एक वैदिक ग्रंथ है। कुमारिल (लग0 750 ई०) के मतानुसार अपने मूल रूप में यह एक ऋग्वेदिक संप्रदाय का ही अंग था। इसकी रचना मनु-संहिता से पहले और मानव-धर्मसूत्र के बाद में मानते हैं। मनु-संहिता से सभी परिचित हैं किंतु मानव-धर्मसूत्र अब लुप्त हो चुका है। वाशिष्ठ धर्मसूत्र में इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि 'वैदिक काल में लेखन-कला का काफी प्रचार था। वशिष्ठ (XVI, 10, 14-15) दस्तावेज को कानूनी प्रमाण मानता है । इसमें पहला सूत्र किसी प्राचीन ग्रंथ या परंपरा-प्राप्त कृति का उद्धरण है। वेदांगों में पाणिनी के व्याकरण की भी गणना है। पाणिनी द्वारा यवनानी के उल्लेख की चर्चा हो चुकी है। इसके अतिरिक्त पाणिनी में लिपिकर और लिबिकर (III, 2. 21) के समस्त-पदों का उल्लेख है। कभी-कभी कोशों के प्रमाण के विरुद्ध लोग इसका अर्थ 'अभिलेखों का कर्ता'27 कर देते हैं किंतु इसका अर्थ लेखक है। इन निश्चित प्रमाणों के अतिरिक्त उत्तर वैदिक ग्रंथों में कतिपय पारिभाषिक शब्द, जैसे; अक्षर, काण्ड, पटल, ग्रंथ आदि आये हैं। विद्वानों ने लेखन-कला के प्रमाणस्वरूप इन्हें उद्धत किया है। दूसरों ने इन्हें दूसरे ही रूप में समझाया है। ये उल्लेख लिखित अक्षरों और हस्त-लिखित ग्रंथों के हैं यह मानना आवश्यक नहीं है ।28 लिखित अक्षरों और हस्त-लिखित ग्रंथों के संबंध में अन्य सामान्य तर्क भी दिये गये हैं, जैसे; वैदिक 24. वही III 2, 33 25. वही I11,2, 5 तथा आगे; मै. म, हि. ऐ.सं. लि. 497 तथा आगेला , इं. आ. 2, 1, 1008 तथा आगे; ब, ए. सा. इ. पं. 1 तथा आग; बे. इं. स्ट्रा 3, 348 तथा आग 26. सै.बु.ई. 14, XVII तथा आगे 27. मै.. म्. ऋ. वे 4, 72 28. मै. म्, हि. ऐ. सं. लि. 521 तथा आगे; गोल्डस्टकर, मानव कल्प सूत्र भूमि०, 14 तथा आगे; वे, इं. स्ट्रा. 5, 16 तथा आगे; मै. म्, ऋ. वे. 4, 72 तथा आगे For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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