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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारतीय पुरालिपि - शास्त्र गलती से मात्रिका मान लिया गया था) इस वर्णमाला में शामिल न थे । ललित- ' विस्तर 19 की वर्णमाला में भी ये चारों द्रव स्वर नहीं हैं । आजकल भारत की प्रारंभिक पाठशालाओं में जो वर्णमाला सिखलाई जाती है उसमें भी ये स्वर संमिलित नहीं हैं । इसका आधार बाराखडी (सं० द्वादशाक्षरी ) है । यह एक तालिका है जिसमें प्रत्येक व्यंजन को 12 स्वरों के संयोग से, अर्थात् क, का से कं कः तक सिखलाते हैं । इस बाराखड़ी को ओम् नमः सिद्धम् के मंगलपाठ के कारण कभी-कभी सिद्धाक्षरसमाम्नाय या सिद्धमात्रिका भी कहते हैं । इसकी प्राचीनता का प्रमाण हुइ-लिन् ( 788 ई० से 810 ई० ) 20 से भी मिलता है । उसने इस मंगलपाठ को 12 में पहली फाड् या चक्र ( युवाङ् च्वाङ् के 12 चाङ्") कहा है । उस काल में हिन्दू लड़के इसीसे विद्यारंभ करते थे । युवाङ् च्वाङ् ने लिखा है कि भारतीय वर्णमाला में 47 अक्षर हैं । संभवत: वह संयुक्ताक्षर 'क्ष' को भी वर्णमाला में संमिलित करता है । इससे यह भी स्पष्ट है कि युवाङ् च्वाङ् ऋ, ऋ, लृ, और लू को वर्णमाला में शामिल नहीं करता । अशोक के समय के एक प्रमाण से भी यही बात सिद्ध होती है। गया में अशोक के संगतराशों ने पत्थरों पर एक अपूर्ण वर्णमाला खोदी है जिसके टुकड़े मिलते हैं । इस वर्णमाला का पुनरुद्धार इस रूप में किया जा सकता है :- अ, आ, इ, *ई, *उ, *ऊ, *ए, *ऐ, ओ, औ (10) *अं, या *अ, क, *ख, *ग, *घ *ङ, * च, छ, *ज *झ (20) * ञ, *ट । इस वर्णमाला में भी ये चारों स्वर नहीं है । इन सबसे यही सिद्ध होता है कि जैसा जैन परंपराओं में मिलता है, ब्राह्मी में ई० पू० तृतीय शताब्दी से ही 46 अक्षर थे और ऐ, औ, अं, अः के स्वरों और ङ् व्यंजन की स्थिति से यह सिद्ध होता है कि इसे संस्कृत की आवश्यकताओं के अनुकूल बनाया गया था; किंतु यह असंभव नहीं कि उस काल में भी ब्राह्मण व्याकरण और ध्वनिशास्त्र के ग्रंथों में द्रव - स्वर के लिए विशेष चिह्नों का प्रयोग करते थे । पर जिस विधि से इन स्वरों के ज्ञात चिह्न बने हैं वह उस विधि से भिन्न है जिससे अन्य स्वर चिह्न बने । ऋ के मात्रा-चिह्न ऋ औरळ का विकास पहले हुआ । आद्यों का बाद में | अ, आ इत्यादि में इससे ठीक उलटी प्रक्रिया अपनाई गई है । (देखिये आगे 4 और ... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19. संस्कृत पाठ (विब्ल, इं.) 145, ल्यूमन, 127 20. बु, इं. स्ट. III, 2, 30 21. सियुकि 1, 78 ( बील); सेंट जुलियन, मेम्वायर्स डेस प्युलेरिन्स बुद्धिकेस 1, 72 और नोट 22. सियुकि 1, 77 23. बु, इं. स्ट. III 2, 31 6 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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