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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ भारतीय पुरालिपि-शास्त्र भारत-सरकार ने संस्कृत के हस्तलिखित ग्रंथों की खोज का कार्य अपने हाथ में लिया है। इस खोज से विदित हुआ है कि भारतीय राजाओं में अनेक के अपने समृद्ध पुस्तकालय हैं जिनमें बहुत से हस्तलिखित ग्रंथ हैं। अलवर, बीकानेर, जम्मू, मैसूर, तंजोर के राज-पुस्तकालयों ने तो अपने संग्रहों के सूचीपत्र भी छापे हैं। खोज-विवरणों से यह भी पता चला है कि भारत में अनेक धनी-मानी सज्जनों के भी सुव्यवस्थित निजी पुस्तकालय हैं। संस्कृत ग्रंथों के अनेक अवतरणों से यह भी स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल में भी ऐसे निजी पुस्तकालय थे। वाण (7वीं शती) हमें बतलाता है कि उसने एक पुस्तक-वाचक रखा था। वायुपुराण की पोथी में इसके हस्तकौशल का वर्णन उसने अपने हर्षचरित में किया है ।561 बर्नेल ने आलोचना की है कि ब्राह्मण हस्तलिखित पुस्तकों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते । पर बर्नेल की यह आलोचना सारे भारत के यहाँ तक कि सारे दक्षिण भारत के ब्राह्मणों के बारे में भी सही नहीं है। गुजरात, राजस्थान, और मराठा-प्रदेश, तथा उत्तर और मध्यभारत में मैंने अनेक ब्राह्मणों और जैन-मुनियों के पुस्तकालय देखे हैं । इनमें कुछ तो अच्छी अवस्था में नहीं हैं, पर अन्य सभी बड़े यत्न से रक्षित हैं। पुस्तकों के प्रति कोई कैसा व्यवहार करता है यह उसकी भौतिक अवस्था पर भी निर्भर है ।563 आ. ताम्रपट्ट सामान्य व्यक्ति अपने ताम्र-पट्टों को विचित्र प्रकार से रखते थे । कई स्थानों पर जैसे वलभी-आधुनिक वला के खंडहरों में ये दीवालों में चुने या मकान की नींव में रखे पाये गये हैं। कई बार तो ये दान-पत्र उन खेतों में ही जिनके दान का उल्लेख इनमें है ईटों से बने किसी गुप्त स्थान में रखे मिले हैं । जिन्हें ये ताम्रपट्ट मिलते हैं या यदि स्वामी गरीब हुआ तो वह इन्हें किसी बनियाँ को बेच देता है या उसके पास गिरवी रख देता है । यही कारण है कि ऐसे ताम्रपट्ट यूरोपीय विद्वानों को प्रायः जहाँ से ये जारी किये गये थे वहाँ से बहुत दूर के किसी स्थान पर मिलते हैं। जिस मूल के आधार पर ये ताम्रपट बनाये 561. निर्णयसागर संस्करण, पृ. 95. 562. ब., ए. सा. ई. पै. 86. 563. मिला. राजेन्द्रलाल मित्र, गॉफ के पेपर्स, 21. 204 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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