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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुस्तकालय गत्ते के बक्सों में रखते हैं । कश्मीर में मुसलमानों की तरह चमड़े से पुस्तकों की जिल्द बांधते हैं और इन्हें हमारी तरह टांड़ों पर रखते हैं। पुस्तकालय का भारतीय नाम भारती-भांडागार था जो जैन ग्रंथों में मिलता है। कभी-कभी इसके लिए सरस्वती-भांडागार शब्द भी मिलता है । ऐसे भांडागार मंदिरों,355 विद्यामठों, मठों, उपाश्रयों, विहारों, संघारामों राज-दरबारों और धनी-मानी व्यक्तियों के घरों में हुआ करते थे। आज भी हैं। पुराणों में लिखा है कि मंदिरों-मठों को पुस्तकों का दान देना धनिकों का कर्तव्य है। 557 इसी प्रकार जैन और बौद्ध उपासकों और श्रावकों का भी यही कर्तव्य बताया गया है। प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकों की प्रशस्तियों से ऐसा पता चलता है कि लोग मुक्तहस्त इस कर्तव्य का पालन भी करते थे । मध्यकाल के राज-पुस्तकालयों में धारा के भोज (11वीं शती) का पुस्तकालय बड़ा प्रसिद्ध था। 1140 ई. में जब सिद्धराज जयसिंह ने मालवा को जीता तो वह यह पुस्तकालय भी अणहिलवाड़ में उठा ले गया । ऐसा प्रतीत होता है कि यह पुस्तकालय वहाँ चालुक्यों के भारती-भाण्डागार में मिला दिया गया । चालुक्यों के भारती-भाण्डागार का उल्लेख 13वीं शती के ग्रंथों में कई बार आया है । एक अप्रकाशित प्रशस्ति के अनुसार नैषधीय की जिस प्रति के आधार पर विद्याधर ने अपनी प्रथम टीका लिखी थी, वह चालुक्य वीसलदेव या विश्वमल्ल (1242-1262 ई.) के भारतीभांडागार की थी। इसी प्रकार यशोधर ने कामसूत्र की जिस प्रति के आधार पर अपनी जयमङ्गलाटीका लिखी वह भी इसी पुस्तकालय से प्राप्त की गयी थी 1559 बोन विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में रामायण की एक हस्तलिखित प्रति है। यह प्रति वीसलदेव के संग्रह की एक प्रति की प्रतिलिपि है।500 555. अभिलेखों में ग्रंथों के बारे में आये प्रसंगों से मिलाइए; उदाह. Inscriptions du Cambodge 30, 31; हुल्श, सा. इं. इं. I,154. __556. डुड्डा के बौद्ध विहार के भिक्षुकों द्वारा सद्धर्म की पुस्तक खरीदने (पुस्तकोपक्रय) · के लिए दान का उल्लेख सन् 568 के वलभी के अभिलेख में आया है, इं. ऐ. VII, 67. 557. हेमाद्रि, दानखण्ड, पृ. 544 तथा आगे । 558. मिला, D. Leben des, J. M. Hemcandra, D.W.A, 183, 231 559. कामसूत्र, 364, टिप्पणी 4, (दुर्गाप्रसाद संस्करण) । 560. Wirtz, die wastl. Rec. des Rāmāyana पृ. 17 तथा आगे। 203 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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