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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ भारतीय पुरालिपि-शास्त्र गया था। हाल ही में पीटरसन को अगहिलवाद पाटण में वि. सं. 1418 (=1361-62 ई.) की कपड़े पर लिखी एक हस्तलिखित पुस्तक मिली है । (पांचवीं रिपोर्ट, 113)। इ. काष्ठ का फलक विनय-पिटक के वे प्रकरण (दे. पृ. 11) जिनमें बौद्ध-भिक्षुओं को धार्मिक आत्म-हत्या के उपदेश 'खोदने' की मनाही की गई है स्पष्ट ही इस बात के साक्षी हैं कि लेखन-सामग्री के रूप में काष्ठ या बाँस के फलकों का प्रयोग अति प्राचीन है । इसी प्रकार जातकों और बाद के ग्रंथों में लिखने की पटिया का उल्लेख मिलता है, जिन पर प्राथमिक पाठशालाओं के विद्यार्थी लिखते थे । बाँस की शलाकाएं बौद्ध भिक्षु पासपोर्ट के रूप में इस्तेमाल करते थे । ( Burnuf: Introd. a historic du Bouddhisme, 259, टिप्प.) । पश्चिमी क्षत्रप नहपान के समय के एक अभिलेख में17 एक ऐसे फलक का उल्लेख आया है जो निगम-सभा में टॅगा रहता था। इस पर लेन-देन का ब्योरा लिखा जाता था। कात्यायन की व्यवस्था है कि वादों का विवरण फलक पर पांडलेख यानी खड़िया से लिखना चाहिए ।498 दंडिन के दशकुमार चरित में इस बात का उल्लेख है कि अपहार वर्मन ने सोये हुए राजकुमारों के नाम अपनी घोषणा एक रोगन लगे फलक पर लिखी थी ।499 बर्मा में ऐसे हस्तलिखित ग्रंथ खूब मिलते हैं जो रोगन लगे फलकों पर लिखे गये हैं। भारत में ऐसे किसी ग्रंथ का उदाहरण नहीं मिला। किंतु ऐसे वर्णन अवश्य मिलते हैं जिनसे ऐसे ग्रंथों का यहाँ भी होना इंगित होता है। विंटरनित्स ने मुझे सूचना दी है कि बोडलीन पुस्तकालय में फलकों पर लिखी एक पुस्तक है। यह पुस्तक असम की है। राजेन्द्रलाल मित्र ने गाउज पेपर्स पृ. 18 पर लिखा है कि उत्तरी पश्चिमी प्रांतों में लोग धार्मिक पुस्तकों की नकल पट्टियों पर खड़िया से कर लेते हैं। ई. पत्तियां दक्षिणी बौद्ध आगमों के अनुसार प्राचीन काल में लेखन सामग्री के रूप में पण्ण (=पर्ण अर्थात् पत्ती) का सर्वाधिक प्रचार था । यद्यपि प्राचीन ग्रंथों में600 497. नासिक अभिलेख सं. 7 पंक्ति 4, बं. आ. स.रि. वे. ई. IV, 102 में । 498. ब., ए. सा. इं. पै. 87 टिप्पणी 2. 499. दशकुमारचरित, उच्छ्वास II, अंत के पास । 500. बु. इ. स्ट. III, 2, 7, 120. 192 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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