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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेखन-सामग्री १९१ ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत प्राचीन काल में ही इसका प्रचार बढ़ गया था, क्योंकि मध्य, पश्चिमी और पूर्वी भारत में जो ताम्रपट्ट मिलते हैं वे भुर्ज के आकार के कटे मालूम पड़ते हैं जो कश्मीर में अंग्रेजी क्वार्टो या चौथाई ताव कागज के आकार का होता है ( बर्नेल) लौकिक संस्कृत के अनेक ग्रंथों में लिखा है और बरूनी भी कहता है कि कम-से-कम उत्तरी, मध्य, पूर्वी और पश्चिमी भारत में सभी चिट्ठियाँ भोजपत्र पर लिखी जाती थीं । भूर्ज - पत्र पर लिखी सबसे प्राचीन कृति खोतान से मिली है जो खरोष्ठी में लिखे धम्मपद का कुछ अंश है । इसी के आसपास की अफगानिस्तान के स्तूप से मैसन को मिली धागे से बंधी पुड़िया भी है । (दे. ऊपर पृ. 37 और पाद-टिप्पणी 100) इसके बाद के गाडफे संग्रह के टुकड़े और बावर का हस्तलिखित ग्रंथ है जिसके पन्ने ताड़-पत्रों के आकार के हैं । ताड़पत्रों की ही भाँति इन्हें बांधने के लिए बीच में छेद हैं, जिन में कोई छल्ला डाल कर इन्हें बांधा गया होगा। 1495 काल की दृष्टि से इसके बाद का बख्शाली का हस्तलिखित ग्रंथ है और इसके बाद एक बड़े व्यवधान के उपरांत के भोजपत्रों वाले वे कश्मीरी ग्रंथ हैं जो पूना, लंदन, आक्सफोर्ड, वियना, बलिन आदि के पुस्तकालयों में सुरक्षित हैं । इनमें शायद ही कोई ऐसा ग्रंथ हो जो 15वीं शती से पुराना हो । आ. रूई का कपड़ा । कुंदी किये कपड़े का उल्लेख निआर्कस (दे. ऊपर पृ. 12) कई स्मृतियों और आंध्र- कालीन अनेक अभिलेखों में मिलता है। इनमें कहा गया है कि सरकारीऔर गैर-सरकारी सभी प्रकार के प्रलेख पट, पट्टिका या कार्पासिक पट पर लिखे जाते थे । 496 बर्नेल और राइस के मत से ( मैसूर और कुर्ग गजेटियर, 1877, 1, 408) कन्नड़ व्यापारी आज भी अपनी बहियों के लिए एक प्रकार के कपड़े का इस्तेमाल करते हैं जिन्हें कडतम् कहते हैं । इन्हें इमली के बीज की लेई से पोत देते हैं और बाद में कोयले से काला कर देते हैं । इन पर खड़िया या सेतखड़ी की पेंसिल से लिखते हैं । जैसलमेर के वृहज्ञज्ञान-कोष में मुझे रेशम की एक पट्टी पर लिखी जैन-सूत्रों की एक सूची मिली थी। इस पर रोशनाई से लिखा 495. ज. ए. सो. बं. LXVI, की प्रतिकृतियाँ, वी. त्सा. कु. मो. V, 496. जॉली, Report und Sitte Grundriss, II, 8. 114; नासिक अभिलेख सं. 11, A, B. ब. आ. स. रि. वे. इ. IV, 104 में । 191 225, हार्नली की बावर की प्रतियों 104. For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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