SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरी लिपियां विभेद है, ही एकमात्र ऐसा उदाहरण है जिसमें उत्तरी भारत में दक्षिणी लिपि का प्रयोग हुआ है। यह शैली बंगाल और नेपाल में अपेक्षाकृत काफो बाद में - प्रकट होती है। __ इसके विपरीत सातवीं शती से हमें तटीय प्रदेशों में, पहले पश्चिम में गुजरात में195 और पूरब में मद्रास से भी आगे196 ऐसे अभिलेख मिलने लगते हैं जिनमें उत्तरी शैली के अक्षरों का इस्तेमाल हुआ है। इस भाँति के प्रलेख आठवीं शती के मध्य से मध्य डेक्कन में भी मिलने लगते हैं। 12वीं-13वीं शती में तो यह प्रवृत्ति कन्नड़ क्षेत्र विजयनगर में भी प्रविष्ट हो जाती है (दे. आगे 23) किंतु द्रविड़ क्षेत्र की उत्तरी सीमा के परे इनका एकछत्र राज्य कभी स्थापित नहीं हुआ। काशगर, जापान, और नेपाल में अब तक जो हस्तलिखित ग्रंथ मिले हैंसबसे प्राचीन ग्रंथ संभवतः चौथी शती का है197-उनमें केवल उत्तरी शैली के अक्षर मिलते हैं। पश्चिमी भारत की ताड़पत्रों पर लिखी हस्तलिखित पुस्तकों में, जो 10वीं शती से मिलने लगती हैं, अभिलेखों की ही लिखावट मिलती है। इनसे सिद्ध होता है कि राजस्थान, गुजरात198 और उत्तरी डेक्कन में199 देवगिरि (दौलताबाद) तक उत्तरी नागरी ही सामान्यतया इस्तेमाल में आती थी। उत्तरी शैली धीरे-धीरे दक्षिण में बढ़ती गई। इसका खुलासा इस प्रकार हो सकता है कि दक्षिण के अनेक राजाओं का उत्तर की परंपराओं के प्रति अनुराग था और उत्तर से ब्राह्मण, लेखन पेशेवाली जातियाँ और बौद्ध और जैन भिक्षु दक्षिण में गये । इसका प्रमाण अनेक अभिलेखों और ऐतिहासिक परंपराओं में सुरक्षित है।200 195. वलभी से प्राप्त इस काल के अभिलेखों के खंडित अंश रायल एशियाटिक की बंबई और राजकोट शाखाओं के संग्रहालयों में हैं। मिला. ज. रा. ए. सो. 1865, 247 । 196. ब., ए. सा. इं. पै. LIII और फल. 22 a; ई. ऐ XVIII, 161, 172. 197. बर्नेल की राय है कि ग्राडफे संग्रह के काशगर में प्राप्त कतिपय अंश बावर की हस्तलिखित प्रति से पुराने हैं, ज. ए. सो. बं. LXVI, 258 और मैं बर्नेल से सहमत हूँ। 198. कीलहान, संस्कृत पांडुलिपियों की खोज-रिपोर्ट 1880-81. पृ. 1 पीटरसन की दूसरी रिपोर्ट, परिशिष्ट 1, और तीसरी रिपोर्ट, परिशिष्ट 1. . 199. ज. रा. ए. सो. 1895, 217. 200. मिला. ब., ए. सा. इं. पै. XX, पृ. 53 तथा आगे; फ्लीट, ए. इं. III, 2. 95 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy