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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८ भारतीय पुरालिपि-शास्त्र को निरवशेष करने वाले आंध्र राजा गोतमि-पुत सातकणि के नासिक के अभिलेखों (सं. 11, a, b=स्त. x) और उसके पुत्र सिरि-पुळुमायि, पुळमाइ या पुलिमावि के अभिलेखों (नासिक सं. 14-स्त. XI) की लिपि है । टालेमी इस राजा का उल्लेख सिरि पोलेमिओस (Siri Polemios) या पोलेमिओस (Polemios) के रूप में करता है ।186 एक ही वास्तविक अंतर ध (24, XI; मिला. स्त. VII) के त्रिभुजाकार रूप में है, सो यह रूप भी हमेशा नहीं मिलता। करीब-करीब इसी प्रकार की लिपि वह है जो स्त. XII, XIII और XIV में दिखाई पड़ती है । स्त. XII की लिपि अपेक्षाकृत उत्तरकालीन आंध्र राजा गोतमिपुत सिरियज्ञ सतकणि के नासिक के अभिलेख से ली गई है। स्त. XIII की लिपि अतिथिक नासिक अभिलेख सं. 20 से और स्त. XIV की नासिक सं. 12 से तैयार की गई है जो आभीर राजा ईश्वरसेन187 के राज्यकाल में खोदा गया था। किंतु स्त. XIV में त (21) का एक विलक्षण रूप मिलता है । यह एक फंदेदार रूप से विकसित हुआ है। इसी प्रकार एक फंदेदार न (25) भी है, जो स्त. IV के उत्तरी रूप से भिन्न है । र (32) में भंग और गहरा है । ल (33) में खड़ी रेखा बाई ओर को मुड़ गई है : इसी प्रकार स्त. XIII का फंदेदार त (21) और स्त० XIV के त (21) और न (25), जो फंदेदार रूपों से निकले हैं; य (31), जिसमें बाईं ओर को भंग है; ल (33) जो बाईं ओर को झुका है; ज्ञः (40) में नीचे का घसीट ञ और दु (23) में ऋ की तरह की उ की मात्रा भी ध्यान देने लायक हैं। उ की ऐसी मात्रा उत्तरकालीन दक्षिण अभिलेखों में फिर मिलती है; मिलाइए, उदाहरणार्थ भु (फल. VII, 30, XII) में उ की मात्रा और तू (फल. III, 21, XVII, XIX) में ऊ की मात्रा। स्त० XV और XVI में इस काल की अलंकृत शैली के दो नमूने हैं जिनमें परस्पर कुछ भिन्नता है। ये कुड़ा (सं. 1-6, 11, 20) और जुन्नार (सं. 3) के अभिलेखों से तैयार किये गये हैं। दोनों में इ और ई की मात्राएं अलंकृत हैं, पर कुड़ा के अभिलेखों में सभी खड़ी रेखाओं के अंत को अलंकृत बनाया गया है, इसमें प (26) और ब (28, मिला. स्त. VI) की बाईं ओर की लकीरों में गाँठ हैं । स्त. XVI में दो और ध्यान देने लायक चिह्न हैं। 186. पा. टि. 185 में उद्धृत ग्रंथों को देखिए। 187. भगवान लाल का अनुमान है कि यह नहपान से कुछ बाद का होगा। देखि. ज. रा. ए. सो. 1894, 657 88 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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