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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पश्चिमी क्षत्रपों की लिपि दामाद शक उषवदात या उषभदात (ऋषभदत्त) 183 के संवत् 41 से 45, (इसे सामान्यतया शक संवत् ही मानते हैं 184)=118 से 122 ई. के लेखों में मिलती हैं। उषवदात के ये अभिलेख शकों के उन अभिलेखों में सबसे पुराने हैं जिन पर तिथियाँ अंकित हैं। कार्ले अभिलेख सं. 19 (स्त. VII) में 'पुरागतिक' या पश्चगतिक प्रकार मिलता है। इसका ध (10), ज (13), द (23), भ (29), य (31), ल (33), स (37) और ह (38) अक्षर फलक II की प्राचीनतर लिपि के रूपों के नजदीक है, खासकर स्त. XXIII; XXIV के प्राचीनतम आंध्र अभिलेखों के। इन्हीं गुफाओं के कुछ अन्य अभिलेखों185 में जिनमें कुछ इनसे पुराने हैं, यही शैली मिलती है। इनमें ऊपर गिनाई दक्षिणी की विशिष्टताओं के धुंधले चिह्न भर मिलते हैं। खड़ी लकीरों के अंत में भंग नितांत प्रारंभिक अवस्था में हैं। त्रिभुजाकार ध (24) पहली बार यहां मिलता है। इस फलक की दूसरी लिपियों में भी ऐसा ही रूप मिलता है (देखि. स्त. XI तथा आगे) । ख (8) का असामान्य रूप कार्ले सं. 19 तक ही सीमित है। ____ इन अभिलेखों की लिपि कुछ गिचपिच-सी है। पर उषवदात के नासिक के अभिलेखों (स्त. VII, IX) के अक्षर बड़े साफ-सुथरे हैं। इनकी प्रणाली शोडास के लेखों (स्त. I) और गिरनार की प्रशस्ति (स्त. VI) से मिलतीजुलती है । इनमें पुरागत रूप नहीं मिलते। दक्षिणी की विशिष्टताएं भी नाममात्र को हैं या बिल्कुल नहीं मिलतीं। केवल दक्षिणी ड साफ अलग दीखता है और यह निरंतर मिलता है । श (35, 42 VIII) जो स्त. VI के श से मिलता है और द्धम् (41, VIII) का हलन्त म, और भ्यः (41, IX) का निचला त्रिपक्षीय य ध्यान देने लायक है। ___ इससे बहुत मिलती-जुलती शहरात-वंश (संभवतः नहपान और उषवदात) ___183. उसभदात केवल कार्ले सं. 19, ब., आ. स. रि. वे. इं. 4, फल. 51 में ही मिलता है। ___184. भंडारकर, अर्ली हिस्ट्री आफ डेक्कन 2, 26 और भगवानलाल, ज. रा. ए. सो. 1890, 642; और देखि. Buhler, Die ind. Inschr. u. das. Alter der ind. Kunstpoesie. 57 तथा आगे, का यही मत है; कनिंघम, क्वा. मि. इं. 3 नहपान की तिथियों को मालव संवत् (ई. पू. 57) की बतलाते हैं और ओल्डेनवर्ग इ. ऐ. X, 227 नहपान को 55-100 ई. के बीच रखते हैं। 185. कार्ले सं. 1-14. ब., आ. स. रि. वे. ई. IV, फल. 47, 48%3B नासिक सं. 4, वही फल. 51. 87 For Private and Personal Use Only
SR No.020122
Book TitleBharatiya Puralipi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeorge Buhler, Mangalnath Sinh
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1966
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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