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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश इसके पिता सिंहसेनके सिक्कोंपरके श०सं०३०४ और इसके बादके स्वामी रुद्रसिंह तृतीयके सिक्कोंपरके संवत्पर विचार करनेसे इसका समय श०सं० ३०४ और ३१० के बीच प्रतीत होता है । स्वामी सत्यसिंह। इसका पता केवल इसके पुत्र स्वामी रुद्रसिंह तृतीयके सिक्कोंसे ही लगता है। अतः यह कहना भी कठिन है कि इसका पूर्वोक्त शाखासे क्या सम्बन्ध था। शायद यह स्वामी सिंहसेनका भाई हो। इसका समय भी श०सं०. ३०४ और ३१० के बीच ही किसी समय होगा। स्वामी रुद्रसिंह तृतीय । [श०-सं० ३१x१( ई०स०३८८ १= वि० स०४४५ ?)] यह स्वामी सत्यसिंहका पुत्र और इस वंशका अन्तिम अधिकारी था। इसके चाँदीके सिक्कोंपर एक तरफ “ राज्ञो महाक्षत्रपस स्वामी सत्यसिंहपुत्रस राज्ञ महाक्षत्रपस स्वामी रुद्रसिंहस" और दूसरी तरफ श०सं०३१४' लिखा होता है। समाप्ति। ईसाकी तीसरी शताब्दीके उत्तरार्धसे ही गुप्त राजाओंका प्रभाव बढ़ रहा था और इसीके कारण आस-पासके राजा उनकी अधीनता स्वीकार करते जाते थे। इलाहाबादके समुद्रगुप्तके लेख से पता चलता है कि शक लोग भी उस ( समुद्रगुप्त ) की सेवामें रहते थे। ई० स० ३८०में समुद्रगुप्तका पुत्र चन्द्रगुप्त गद्दी पर बैठा । इसने ई० स० ३८८ के आस-पास रहे-सहे शकोंके राज्यको भी छीनकर अपने राज्य में मिला लिया और इस तरह भारतमें शक-राज्यकी समाप्ति हो गई। (१) यह अङ्क साफ नहीं पढ़ा जाता है । For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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