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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६ ) ईसाकी चौथी शताब्दी के प्रारम्भमें चीनी यात्री फाहियान भारतमें आया था। इसकी यात्राका प्रधान उद्देश्य केवल बौद्धधर्मकी पुस्तकोंका संग्रह और अध्ययन करना था । इसके यात्रा-वर्णनसे उस समयकी अनेक बातोंका पता लगता है । परन्तु इसके इतने बड़े इस सफरनामेमें उस समयके प्रतापीराजा चन्द्रगुप्त द्वितीयका नाम तक नहीं दिया गया है। इससे भी हमारे उपर्युक्त लेख ( प्राचीन कालसे ही भारतवासी मनुष्य-चरित लिखनेकी तरफ कम ध्यान देते थे ) की ही पुष्टि होती है । इस प्रकार उपेक्षाकी दृष्टिसे देखे जानेके कारण जो कुछ भी ऐतिहासिक सामग्री यहाँपर विद्यमान थी, वह भी कालान्तरमें लुप्तप्राय होती गई और होते होते दशा यहाँतक पहुँची कि लोग चारणों और भ्राटोंकी दन्तकथाओंको ही इतिहास समझने लगे । आजसे १५० वर्ष पूर्व प्रसिद्ध परमार राजा भोजके विषयमें भी लोगों को बहुत ही कम ज्ञान रह गया था । दन्तकथाओंके आधारपर वे प्रत्येक प्रसिद्ध विद्वानको भोजकी सभाके नवरत्नों में समझ लेते थे । और तो क्या स्वयं भोज-प्रबन्धकार बल्लालको भी अपने चरितनायकका सच्चा हाल मालूम न था । इसीसे उसने भोजके वास्तविक पिता सिन्धुराजको उसका चचा और चचा मुअको उसका पिता लिख दिया है। तथा मुखका भोजको मरवानेका उद्योग करना और भोजका मान्धाता स महीपतिः " आदि लिखकर भेजना बिलकुल बे-सिर-पैरका किस्सा रच डाला हैं पाठकोंकी ८८ ' For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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