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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निवेदन। समस्त सभ्य जगत्में इतिहास एक बड़े ही गौरवकी वस्तु समझा जाता है; क्योंकि देश या जातिकी भावी उन्नतिका यही एक साधन है । इसीके द्वारा भूतकालकी घटनाओंके फलाफल पर विचार कर आगेका मार्ग निष्कण्टक किया आ सकता है। यही कारण है कि आजकल पश्चिमीय देशोंमें बालकोंको प्रारम्भसे ही अपने देशके इतिहासकी पुस्तकें और महात्माओंके जीवनचरित पढ़ाये जाते हैं। इसीसे वे अपना और अपने पूर्वजोंका गौरव अच्छी तरह समझने लगते हैं । हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है कि जहाँके निवासी अपनी मातृभाषा-हिन्दीमें देशी ऐतिहासिक पुस्तकोंके न होनेसे इससे वञ्चित रह जाते हैं और आजकलकी प्रचलित अँगरेजी तवारीखोंको पढ़कर अपना और अपने पूर्वजोंका गौरव खो बैठते हैं। इस लिए प्रत्येक भारतीयका कर्तव्य है कि जहाँतक हो इस त्रुटिको दूर करनेकी कोशिश करे। प्राचीन कालसे ही भारतवासी धार्मिक जीवनकी श्रेष्ठता स्वीकार करते आये हैं और इसी लिए वे मनुष्योंका चरित लिखनेकी अपेक्षा ईश्वरका या उसके अवतारोंका चरित लिखना ही अपना कर्तव्य समझते रहे हैं। इसीके फलस्वरूप संस्कृत-साहित्यमें पुराण आदिक अनेक ग्रन्थ विद्यमान हैं। इनमें प्रसंगवश जो कुछ भी इतिहास आया है वह भी धार्मिक भावोंके मिश्रणसे बड़ा जटिल हो गया है । For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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