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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश नदियोंके प्रवाहीर्णोद्धार करवाया । र उक्त लेख गिरनार इसे मौर्यवंशी राजा चन्द्रगुप्त ( ईसाके पूर्व ३२२ से २९७ ) के सूबेदार वैश्य पुष्यगुप्तने बनवाया था। उक्त चन्द्रगुप्तके पौत्र राजा अशोकके समय ( ईसाके पूर्व २७२-२३२) ईरानी तुषास्फने इसमेंसे नहरें निकाली थीं। परन्तु महाक्षत्रप रुद्रदामाके समय सुवर्णसिकता और पलाशिनी आदि नदियोंके प्रवाहसे इसका बाँध टूट गया। उस समय उक्त राजाके सूबेदार सुविशाखने इसका जीर्णोद्धार करवाया । यह सुविशाख पह्नव-वंशी कुलाइपका पुत्र था। तथा इसी कार्यकी यादगारमें उक्त लेख गिरनार पर्वतकी उसी चट्टानके पीछे खुदवाया गया था जिसपर अशोकने नहरें निकलवाते समय अपनी आज्ञायें खुदवाई थीं । अन्तमें इसका बाँध फिर टूट गया। तब गुप्तवंशी राजा स्कन्दगुप्तने, ईसवी सन् ४५८ में, इसकी मरम्मत करवाई। दामजदश्री (दामध्सद) प्रथम । [श० सं० ७२-१०० ( ई० स० १५०-१७८ वि० सं० २०७-२३५)] यह रुद्रदामा प्रथमका पुत्र और उत्तराधिकारी था । यद्यपि इसके भाई रुद्रसिंह प्रथम और भतीजे रुद्रसेन प्रथमके लेखोंमें इसका नाम नहीं है तथापि जयदामाका उत्तराधिकारी यही हुआ था। इसके भाई और पुत्रके संवत्वाले सिक्कोंको देखनेसे पता चलता है कि दामजदके बाद इसके भाई और पुत्र दोनोंमें राज्याधिकारके लिए झगड़ा चला होगा । परन्तु अन्तमें इसका भाई रुद्रसिंह प्रथम ही इसका उत्तराधिकारी हुआ । इसीसे रुद्रसिंहने अपने लेखकी वंशावलीमें अपने पहले इसका नाम न लिख कर सीधा अपने पिताका ही नाम लिख दिया है । बहुधा वंशावलियोंमें लेखक ऐसा ही किया करते हैं। __ इसने केवल चाँदीके सिक्के ही ढलवाये थे। इन पर क्षत्रप और महाक्षत्रप दोनों ही उपाधियाँ मिलती हैं । इसके क्षत्रप उपाधिवाले सिक्कोंपर " राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रदामपुत्रस राज्ञो क्षत्रपस दामसदस" या "राज्ञो For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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