SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जालोरके सोनगरा चौहान । इससे और ख्यातों आदिसे अनुमान होता है कि यह कान्हड़देव सामन्तसिंहका पुत्र था। यद्यपि इसके राज्य-समयका एक भी लेख अबतक नहीं मिला है, तथापि तारीख फरिश्तामें इसका उल्लेख है । उसमें एक स्थानपर वि० सं० १३६१ ( ई० स० १३०४ हि० स० ७३) की अलाउद्दीनके सामन्त ऐनुलमुल्क मुलतानीकी विजयके वर्णनमें लिखा है कि जालवरका राजा नेहरदेव एनुलमुल्ककी उज्जैन आदिकी विजयको देखकर घबरा गया और उसने सुलतानकी अधीनता स्वीकार कर ली। उसीमें आगे चलकर लिखा है कि, “जालोरका राजा नेहरदेव दिल्लीके बादशाहके दरबार में रहता था । एक दिन सुलतान अलाउद्दीनने गर्वमें आकर कहा कि भारतमें मेरा मुकाबला करनेवाला एक भी हिन्दु राजा नहीं रहा है । यह सुन नेहरदेवने उत्तर दिया कि यदि मैं जालोरपर आक्रमण करनेवाली शाहीसेनाको हराने योग्य सेना एकत्रित न कर सकूँ तो आप मुझे प्राणदण्ड दे सकते हैं । इसपर सुलतानने उसे सभासे चले जानेकी आज्ञा दी । परन्तु जब सुलतानको उसके सेना एकत्रित करनेका समाचार मिला तब उसे लज्जित करनेके लिये सुलतानने अपनी गुलबहिश्त नामक दासीकी अधीनतामें जालोर पर आक्रमण करनेके लिए सेना भेजी । उक्त दासी बडी वीरतासे लड़ी । परन्तु जिस समय किला फतह होनेका अवसर आया उस समय वह बीमार होकर मर गई । इस पर उसके पुत्र शाहीनने सेनाकी अधिनायकता ग्रहण की । परन्तु इसी अवसर पर नेहरदेवने किसे निकल शाही सेनापर हमला किया और स्वयं अपने हाथसे शाहीनको कलकर उसकी सेनाको दिल्लीकी तरफ चार पड़ाव तक भगा (१) Brigg's Fariahta, Vol. I, P. 362, (२) Briggs Fariahta, Vol. I, P. 370-71, For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy