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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश संगसे संगनका तात्पर्य होगा। यह वीरधवलका साला और वनथली. ( जूनागढ़के पास ) का राजा था। इसके समयके ५ लेख मिले हैं । इनमें सबसे पहला वि० सं० १३१९ का पूर्वोल्लिखित सुंधा माताके मन्दिरवाला लेख है । दूसरा वि० सं० १३२६ का है, तीसरा वि० सं० १३२८ का चौथा वि० सं० १३३३ का और पाँचवाँ वि० सं० १३३४ का । इस अन्तिम लेखमें इसके दो भाइयोंके नाम दिये हैं-वाहड़सिंह और चामुण्डराज । ___ अजमेरके अजायबघरमें एक लेख रक्खा है । इससे प्रकट होता है कि चाचिगदेवकी रानीका नाम लक्ष्मीदेवी और कन्याका नाम रूपादेवी था । इस (रूपादेवी) का विवाह राजा तेजसिंहके साथ हुआ था; जिससे इसके क्षेत्रसिंह नामक पुत्र हुआ। ५-सामन्तसिंह। सम्भवतः यह चाचिगदेवका पुत्र और उत्तराधिकारी था। वि० सं० १३३९ से १३५३ तकके इसके लेख मिले हैं । इसके समय इसकी बहन रूपादेवीने वि० सं० १३४० में ( जालोर परगनेके) बुडतरा गाँवमें एक बावड़ी बनवाई थी। ६-कान्हड़देव । सम्भवतः यह सामन्तसिंहका पुत्र होगा। वि० सं० १३५३ के जालोरसे मिले सामन्तसिंहके समयके लेखमें लिखा है:___“ श्रीसुवर्णगिरौ अयेह महाराजकुलश्रीसामन्तसिंहकल्याणविजय सज्ये तत्पादपद्मोपजीविनि [ रा ] जश्रीकान्हडदेवराज्यधुरा [ मु] दहमाने." (१) G. B. P., Vol. I, P. 200 (२) Ep. Ind., Vol, XI, P. 61, ३०८ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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