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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाडोल और जालोरके चौहान । संधा पहाड़ी लेखसे प्रकट होता है कि इसने भिलिम नामक राजाको हराया, तुरुष्कोंको परास्त किया और सोमेशके मन्दिर में सोनेका तारण लगवाया । इस लेखमेंका भिलिम सम्भवतः देवगिरिका यादवराजभिलिम होगा। तुरुष्कोंसे मुसलमानोंका तात्पर्य है । तारीख फरिश्तामें लिखा है कि “हिजरी सन् ५७४ ( वि० सं० १२३५= ई० स० ११७८ ) में मुहम्मद गोरी ऊच और मुलतानकी तरफ गया । वहाँसे रेगिस्तानके रास्ते गुजरातकी तरफ चला । उस समय भीमदेवने उसका मार्ग रोककर उसे हरायो ।” सम्भवत: इसी युद्ध में केल्हण और इसका भाई कीर्तिपाल भी लड़े होंगे। उपर्युक्त सोमेश महादेवका मन्दिर किराडू ( मारवाड़ ) में अबतक विद्यमान है । इसके समयके बहुतसे लेख मारवाड़से मिले हैं । ये वि० सं० १२२१ ( ई० सं० १९६४ ) से वि० सं० १२३६ ( ई० स० ११७९ ) तकके हैं । परन्तु सीरोही राज्यके पालड़ी गाँवसे एक ऐसा लेख मिला है, जिससे वि० सं० १२४९ ( ई० स० ११९२) तक इसका होना प्रकट होता है । यह भी चौलुक्योंका सामन्त था। इसकी रानियोंका नाम महिबलदेवी और चाल्हणदेवी था। १६-जयतसिंह । यह केल्हणदेवका पुत्र और उत्तराधिकारी था । इसके समयके दो शिलालेख मिले हैं.-पहलों वि० सं० १२३९ ( ई० स० ११८२ ) का भीनमालसे और दूसरा वि० सं० १२५१ ( ई० स० ११९४) का सादड़ीसे। पहले लेखमें इसे 'राज-पुत्र' लिखा है और दसरेमें — महाराजाधिराज'। (१) Brigg's )'arishta, Vol. I, P. 170. () Ep. Id. Val, XI, P. 73. (३) B. G.. Vol. I, P. 474, २९७ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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