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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश लिखा है । उपर्युक्त घटना वि० सं० १२०५ ( ई० स० ११४८) के आसपास हुई होगी। हम पहले विग्रहराज ( वीसलदेव ) चतुर्थके वर्णनमें लिख चुके हैं कि उसने आल्हणके चौलुक्यराजा कुमारपालका पक्ष लेने के कारण नाडोल और जालोरपर हमलाकर उन्हें नष्ट किया था। ___ आल्हणकी स्त्रीका नाम अन्नलदेवी था। यह राठोड़ सहुलकी कन्या थी। वि० सं० १२२१ ( ई० स० ११६४ ) का इसका एक शिलालेख सांडेरावसे मिला है। उस समय इसका पुत्र केल्हण राज्यका अधिकारी था । अन्नलदेवीके तीन पुत्र थे-केल्हण, गजसिंह और कीर्तिपाल । वि० सं० १२१८ (ई० स० ११६१ ) श्रावण सुदि १४ का आल्हणका एक ताम्रपत्र भी नाडोलसे मिला है। ___ इसने अपने तीसरे पुत्र कीर्तिपालको नाडलाईके पासके १२ गाँवदिये थे । इसका भी वि० सं० १२१८ श्रावण वदि ५ का एक ताम्रपत्र नाडोलसे मिला है। __ हम ऊपर वि० सं० १२०९ के आल्हणदेवके लेखका उल्लेख कर चुके हैं। उसकी १७ वीं और १८ वीं पंक्तिमें लिखा है:___“ स्वहस्तोयं महारा[जश्रीआल्हणदेवस्य ] श्रीमहाराजपुत्रश्रीकेल्हणदेवमेतत् ॥ महाराजपुत्रगजसिंहस्य [ म ] तं ।" इससे अनुमान होता है कि आल्हणदेवके समय उसके दोनों बड़े पुत्र राज्यका कार्य किया करते थे। इसके मन्त्रीका नाम सुकर्मा था। यह पोरवाड़ महाजन धरणीधरका पुत्र था। १५-केल्हण । यह आल्हणका पुत्र और उत्तराधिकारी था। (१) बीजोल्याका लेख No. 154 of Prol. Kielhorn's Appendix to Vol. V, २९६ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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