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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश समयमें दिल्लीके हिन्दू राज्यकी समाप्ति होकर उसपर मुसलमानोंका अधिकार हो गया। इसके ताँबेके सिक्के मिलते हैं जिनकी एक तरफ सवारकी मूर्ति और 'श्रीपृथ्वीराजदेव' लिखा रहता है तथा दूसरी तरफ बैलकी तसवीर और 'आसावरी श्रीसामंतदेवः' लिखा होता है । यह सामन्तदेव शायद चौहानोंका खिताब होगा। कुछ सिक्के ऐसे भी मिले हैं जिनपर एक तरफ पृथ्वीराजका नाम और दूसरी तरफ सुलतान मुहम्मद सामका नाम है । पण्डित गौरीशंकर ओझाका अनुमान है कि ये सिक्के पृथ्वीराजके कैद होने और मारे जानेके बीचके समयके होंगे । इस बातकी पुष्टिमें ताजुलम आसिरका प्रमाण उद्धृत किया जा सकता है । उसमें लिखा है कि--" अजमेरका राजा; जो कि सजासे बचकर रिहाई हासिल कर चुका था मुसलमानोंसे नफरत रखता था । जब उसके साजिश करनेका हाल बादशाहको मालूम हुआ तब उसकी आज्ञासे राजाका सिर काट दिया गया। इससे प्रकट होता है कि पृथ्वीराज कैद होनेके बाद भी कुछ दिन जीवित रहा था । सम्भव है कि ये सिक्के उसी समयके हों। इसके समयके ५ शिलालेख मिले हैं-पहला वि० सं० १२३६ ( ई० स० ११७९) आषाढ कृष्णा १२ का। यह मेवाड़ ( जहाजपुर जिले ) के लोहारी गाँवसे मिला है । दूसरा और तीसरा मदनपुर ( बुंदेलखंड ) से मिला है। इनमेंका एक वि० सं० १२३९ ( ई० स० ११८२) का है । चौथा वि० सं० १२४४ ( ई० स० ११८७ ) के श्रावण मासका है । यह बीसलपुरसे मिला है। और पाँचवाँ वि० सं० १२४५ ( ई० स० ११८८) की फाल्गुन शुक्ला १२ का है। यह मेवाड़ ( जहाजपुर ) के आंवलदा गाँवसे मिला है। . (१) यह वृत्तान्त पहले लिखा चा चुका है। For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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