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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश हूँ, अतः उसको सारा हाल लिखकर उसकी आज्ञा मँगवाता हूँ तबतक आप लड़ाई बंद रक्खें । इस प्रकार राजपूत सेनाको विश्वास देकर आप उनपर अचानक हमला करनेकी तैयारीमें लगा और सूर्योदयके यूर्व ही नदी पार कर उनपर आ टूटा । यह देख हिन्दू भी सँभलकर लड़ने लगे। सुलतानने अपनी फौजके ४ टुकड़े कर उन्हें बारी बारीसे राजपूत सेना पर हमला करने और सामनेसे भाग कर पीछे आती हुई शत्रु-सेनापर पलट कर पीछेसे हमला करनेका आदेश दिया । इस प्रकार दिनभर लड़ाई होती रही और जब हिन्दू थक गये तब सुलतानने अपनी १२००० रक्षित सेना लेकर उनपर हमला किया । इस पर राजपूत फौज हार गई और अनेक अन्य राजाओंके साथ दिल्लीका चामुण्डराय मारा गया तथा अजमेरका राजा पिथोराय ( पृथ्वीराज ) सरस्वतीके तीरपर पकड़ा जाकर मारा गया । विजयी सुलतान अजमेर पहुँचा और वहाँपर सामना करनेवाले कई हजार नगरवासियोंको मारकर और कर देनेकी शर्तपर पिथोराय (पृथ्वीराज) के पुत्र कोलाको अजमेर सौंप स्वयं दिल्लीकी तरफ चल पड़ा । वहाँ पहुँचने पर दिल्लीके नवीन राजाने. उसकी वश्यता स्वीकार की। इसके बाद कुतबुद्दीन एबकको सेनासहित कुहराममें छोड़ सुलतान उत्तरी हिन्दुस्तानके सिवालक पहाडोंकी तरफ होता हुआ गजनी चला गया । उसके बाद कुतबुद्दीन ऐबकने चामुण्डरायके उत्तराधिकारियोंसे दिल्ली और मेरट छीन लिया और हि० स० ५८९ (वि० सं० १२५०-ई०स० ११९३) में दिल्लीको अपनी राजधानी बनायाँ ।" नवलकिशोरप्रेसकी छपी फरिश्ताकी तवारीखमें उपर्युक्त वृत्तान्त कुछ फेर फारसे लिखा है । उसमें १२०००० सवारोंके स्थानपर १०७००० सवार और चामुण्डरायकी जगह खंडेराय लिखा है । (१) Brigg's Farishta, Vol. I, P. 173-178. For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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