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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश शक-संवत् ११२७ (विक्रमसंवत् १२६२) में लक्ष्मण-सेनके महामाण्डलिक, बटुदासके पुत्र, श्रीधरदास, ने सदुक्तिकर्णामृत नामक ग्रन्थ स ग्रह किया था। उसमें इन दोनोंके रचित पद्य भी दिये गये हैं। इस ग्रन्थमें बङ्गालके कोई ४००० से अधिक कवियोंके श्लोक सङ्ग्रह किये गये हैं। अतएव यह ग्रन्थ इन कवियोंके समयका निर्णय करनेके लिए बहुत उपयोगी है। इस ग्रन्थके कर्ताका पिता बटुदास लक्ष्मणसेनका प्रीतिपात्र और सलाहकार सामन्त थी। बल्लालसेन विद्वानोंका आश्रयदाता ही नहीं, स्वयं भी विद्वान् था। शक-संवत् १८९१ ( विक्रम संवत् १२२६ ) में उसने दान-सागर नामक पुस्तक समाप्त की और इसके एक वर्ष पहले, शक-संवत् १०९० (वि० सं० १२२५) में अद्भुतसागर नामक ग्रन्थ बनाना प्रारम्भ किया था। परन्तु इसे समाप्त न कर सका । बल्लालसेनकी मृत्युके विषयों इस ग्रन्थमें लिखा है शक-संवत् १०९० (विक्रम संवत् १२२५) में बल्लालसेनने इस ग्रन्थका प्रारम्भ किया और इसके समाप्त होने के पहले ही उसने अपने पुत्र लक्ष्मणसनको राज्य सौंप दिया । साथ ही इस पुस्तकके समाप्त करनेकी आज्ञा भी दे दी। इतना काम करके गङ्गा और यमुनाके सङ्गममें प्रवेश करके अपनी रानीसहित उसने प्राण त्याग किया। इस घटनाके बाद लक्ष्मणसेनने अद्भुतसागर समाप्त करवाया। बल्लालसेनकी गङ्गा-प्रवेशवाली घटना-शक संवत् ११००, विक्रमसंवत् १२३५ या ईसवी सन ११७८ के इधर उधर होनी चाहिए, क्योंकि लक्ष्मणसेनका महामण्डलिक श्रीधरदास, अपने सदुक्तिकर्णामृत ग्रन्थकी समाप्तिका समय शक-संवत् ११२७ (वि० स० १२६२ ईसवी (१) J. Bm. A. S. Pro., 1901, p. 75. For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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