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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाल-वंश। है कि हर्षने भी धर्मपालकी सहायता की होगी तथा चन्देल राजा हर्ष पड़िहार क्षितिपाल (महीपाल) और धर्मपाल ये तीनों समकालीन होंगे। यदि यह अनुमान ठीक हो तो धर्मपाल विक्रम संवत् ९७४ के आसपास विद्यमान रहा होगा, क्योंकि महीपाल ( क्षितिपाल ) का एक लेख मिला है, जिसमें इस संवत्का उल्लेख है। ___ यद्यपि जनरल कनिंगहामका अनुमान है कि सन् ८३० ईसवीसे ८५० ईसवी (विक्रम संवत् ८८७-९०५) तक धर्मपालने राज्य किया होगा। तथापि, राजेन्द्रलाल मित्र इसके राज्यशासनका काल सन् ८७५ ईसवीसे ८९५ ईसवी ( विक्रम संवत् ९३२ से ९५२) तक मानते हैं। कन्नौजकी पूर्वोक्त घटनासे यही पिछला समय ही ठीक समयका निकटवर्ती मालूम होता है। धर्मपालकी स्त्रीका नाम रण्णा देवी था। वह राष्ट्रकूट ( राठौर) राजा परबलकी पुत्री थी। यद्यपि डाक्टर कीलहान, परबलके स्थानपर श्रीवल्लभ अनुमान करके, जनरल कनिंगहामके निश्चित पूर्वोक्त समयके आधारपर, वल्लभको दक्षिणका राठौर, गोविन्द तीसरा, मानते हैं और डाक्टर भाण्डारकर उसीको कृष्णराज दूसरा अनुमान करते हैं; तथापि परबलको अशुद्ध समझने और उसके स्थानपर श्रीवल्लभको शुद्ध पाठ माननेकी कोई आवश्यकता नहीं प्रतीत होती । यह परबल शायद उसी राठौर वंशमें हो जिस वंशके राजा तुङ्गकी पुत्री भाग्यदेवीका विवाह धर्मपालके वंशज राज्यपालसे हुआ था। इसी राठौर राजा तुङ्गका एक शिला-लेख बुद्धगयामें मिला है। धर्मपाल के राज्यके बत्तीसवें वर्षका एक ताम्रपत्र खालिमपुरमें मिला है । उससे प्रकट होता है कि उस समय त्रिभुवनपाल उसका युवराज और (१) Ind. Ant., Vol. XVI, p. 174. (२) Ind. Ant, Vol. XXI. Manghor Plate. (३)J. B.A.S., Vol. 63, p. 53, and Ep. Ind., Vol, p. 247. १८५ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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