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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश इन्द्रराज आदि शत्रुओंको जीत कर महोदय (कन्नौज) की राजलक्ष्मी छीन ली । फिर उसे चक्रायुधको दे दिया। इस विषयमें खालिमपुरके ताम्रपत्रमें लिखा है कि धर्मपालने पञ्चालकाके राज्यपर ( जिसकी राजधानी कन्नौज थी) अपना अधिकार जमा लिया था । उसकी इस विजयको मत्स्य, मद्र, कुरु, यवन, भोज, अवन्ति, गान्धार और कीर देशके राजाओंने स्वीकार किया था । परन्तु धर्मपालने यह विजित देश कन्नौजके राजाको ही लौटा दिया था। पूर्वोक्त भागलपुरके ताम्रपत्रमें लिखा है कि इसने कन्नोजका राज्य इन्द्रराज नामक राजासे छीन लिया था । यह इन्द्रराज दक्षिण (मान्यखेट) का राठोर राजा तीसरा इन्द्र था । इस (इन्द्रराज) ने यमुनाको पार करके कन्नौजको नष्ट किया था । गोविन्दराजके खम्भातके ताम्रपत्रसे यही प्रकट होता है । सम्भवतः इसीलिए इससे राज्य छीनकर धर्मपालने कन्नौजके राजा चक्रायुधको वहाँका राजा बनाया होगा। इस राठौर राजा तीसरे इन्द्रराजके समयमें कन्नौजका राजा पड़िहार क्षितिपाल ( महीपाल ) था । अतएव चक्रायुध शायद उसका उपनाम ( खिताब ) होगा । नवसारीमें मिले हुए इन्द्रराजके ताम्रपत्रसे जाना जाता है कि उसने उपेन्द्रको जीता था। वहाँ इस 'उपेन्द्र' शब्दसे चक्रायुधका ही तात्पर्य है; क्योंकि चक्रायुध और उपेन्द्र दोनों ही विष्णुके नाम हैं। पूर्वोक्त क्षितिपालसे कन्नौजका अधिकार छिन गया था; परन्तु अन्तमें दूसरोंकी सहायतासे, उसने उसपर फिर अपना अधिकार कर लिया था। ___ खजुराहाके लेखसे जाना जाता है कि चन्देल राजा हर्षने पड़िहार क्षितिपालको कन्नौजकी गद्दी पर बिठाया । इससे प्रतीत होता (१) Ep. Ind, Vol. IV, p. 248. For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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