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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश वागड़के परमार । १-डम्बरसिंह। मालवेके परमार राजा वाक्पतिराज ( प्रथम ) के दो पुत्र हुएवैरिसिंह ( दूसरा), और डम्बरसिंह । जेष्ठ पुत्र वैरिसिंह अपने पिताका उत्तराधिकारी हुआ और छोटे पुत्र डम्बरसिंहको वागड़का इलाका जागीरमें मिला । इस इलाकेमें डूंगरपुर और बाँसवाड़ेका कुछ हिस्सा - शामिल था। २-कडून्देव । यह डम्बरसिंहका वंशज था । वि० सं० १०२९ ( ई० स० ९७२) के करीब मालवेके परमार-राजा सीयक, दूसरे (श्रीहर्ष ) के और · कर्णाटकके राठौड़ खोहिगदेवके बीच युद्ध हुआ था। उस युद्धमें कङ्कदेवने नर्मदाके तट पर खोहिगदेवकी सेनाको परास्त किया था । उसी युद्धमें, हाथीपर बैठ कर लड़ता हुआ, यह मारा भी गया था। ३-चण्डप । यह कन्देवका पुत्र था । उसीके पीछे यह गद्दी पर बैठा । ४-सत्यराज । यह चण्डपका पुत्र और उत्तराधिकारी था। ५-मण्डनदेव । यह सत्यराजका पुत्र था और उसके मरने पर उसकी जागीरका - मालिक हुआ । इसका दूसरा नाम मण्डलीक था। ६-चामुण्डराज। यह मण्डनका पुत्र था। उसीके पीछे उसका उत्तराधिकारी हुआ। १७४ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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