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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भास्तके प्राचीन राजवंश नामक मन्दिर बनवाया । यह मन्दिर पर्वतमें ही खोद कर बनाया गया है । इनके वंशमें आठवाँ राजा गोविन्द ( द्वितीय ) हुआ। उसके समयमें इनका राज्य मालवेकी सीमा तक पहुंच गया था । लाट देश (भड़ोंच ) को जीत कर वहाँका राज्य गोविन्दने अपने भाई इन्द्रको दे दिया । इन्द्रसे इस वंशकी एक नई शाखा चली। ____ इसी राष्ट्रकूट-वंशके ग्यारहवें राजा अमोघवर्षने मान्यखेट बसाया था। इस वंशके अठारहवें राजा खोट्टिगको मालवेके राजा सीयक (हर्ष) ने और उन्नीसवें कर्कदेवको चौलुक्य तैलप (दूसरे ) ने हराया था। इसी तैलपसे कल्याणके पश्चिमी चौलुक्योंकी शाखा चली । इस शाखाका राज्य ई० स० ११८३ तक रहा । मुझको भी इसी तैलपने मारा था । इस शाखाके छठे राजा सोमेश्वर ( दूसरे ) के सामनेसे भोजको भागना . पड़ा था। इसी शाखाके सातवें राजा विक्रमा'दित्यने मालवेके परमारोंको सहायता दी थी। पिछले यादव राजा। बारहवीं सदीमें, दक्षिणमें, देवगिरि (दौलताबाद ) के यादवोंका प्रताप प्रबल हुआ। इस शाखाने प्राय: ई० स० ११८७ से १३१८ तक राज्य किया । जिस समय सुभट वर्माने गुजरात पर चढ़ाई की उस समय सिंघन भी उसके साथ था। इस वंशका अन्तिम प्रतापी राजा रामचन्द्र, भोज (द्वितीय ) का मित्र था। चेदिके राजा।। हैहय-वंशियोंका राज्य त्रिपुरी में था। उसे अब तेवर कहते हैं । यह नगर जबलपुरके पास है। नवीं सदीमें कोकल्ल ( प्रथम ) से यह वंश चला । इनके और परमारोंके बीच बहुधा लड़ाई रहा करती थी। मालदेके राजा मुझने इस वंशके दसवें राजा युवराजको और भोज (प्रथम) For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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