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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालवेक परमार । प्रथम अधिकारी बनाया था। इससे अनुमान होता है कि मुहम्मद तुगलकने ही मालवेके परमार-राज्यकी समाप्ति की। __ यद्यपि फीरोजशाह तुगलकके समय तक मालवेके सूबेदार दिल्लीके अधीन रहे, तथापि उसके पुत्र नासिरुद्दीन महमूदशाहके समयमें दिलाघरखाँ गोरी स्वतन्त्र हो गया । इस दिलावरखाँको नासिरुद्दीनने हि. स०७९३ (वि० सं० १४४८) में मालवेका सूबेदार नियत किया था। हि. स. ८०१ ( वि० सं० १४५६ ) में, जिस समय तैमूरके भयसे नासिरुद्दीन दिल्लीसे भागा और दिलावरखाँके पास धारामें आ रहा, उस समय दिलावरने नासिरुद्दीनकी बहुत खातिरदारी की । इस बातसे नाराज होकर दिलावरखाँका पुत्र होशङ्ग माण्डू चला गया । वहाँके दृढ़ दुर्गकी उसने मरम्मत कराई । उसी समयसे मालवेकी राजधानी माण्डू हुई। ___ मालवे पर मुसलमानोंका अधिकार हो जानेपर परमार राजा जयसिंहके वंशज जगनेर, रणथंभोर आदिमें होते हुए मेवाड़ चले गये । वहाँ पर उनको जागीरमें बीजोल्याका इलाका मिला । ये बीजोल्यावाले धाराके परमार-वंशमें पाटवी माने जाते हैं। इस समय मालवेमें राजगढ़ और नरसिंहगढ़, ये दो राज्य परमारोंके हैं। उनके यहाँकी पहलेकी तहरीरोंसे पाया जाता है कि वे अपनेको उदयादित्यके छोटे पुत्रोंकी सन्तान मानते हैं और बीजोल्याचालोंको अपने वंशके पाटवी समझते हैं । यद्यपि बुन्देलखण्डमें छतरपुरके तथा मालवेमें धार और देवासके राजा भी परमार हैं, तथापि अब उनका सम्बन्ध मरहटोंसे हो गया है। सारांश। मालवेके परमार-वंशमें कोई साढ़े चार या पाँच सौ वर्ष तक राज्य रहा १६९ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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