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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४) मारवाड़में कलालोंकी एक शाखा है वह अपनी उत्पत्ति टाक जातिके राजपूतोंसे बतलाती है। इसी प्रकार गुजरात के बादशाह भी ‘टाक-गोत' के कलालों से ही थे, और शराबके कारबारसे ही इनको बादशाही मिली थी । इनके इतिहासोंमें भी इनको 'टाक' लिखा है, और इनके कलाल कहलानेका यह सबब दिया है कि, इनका मूलपुरुष साहू वजीह-उलमुल्क, जो कि फीरोजशाहका साला था अमीरोंमें दाखिल होनेसे पहले उसका शराबदार ( शराबके कोठारका अधिकारी ) था। _इसी प्रकार नागोरके पुराने रईस खानजादे भी कलाल ही थे। अबतक एक भी ऐसी किताब नहीं मिली है जो हिदुस्तानके पुराने राजाओंके समयके राज्यप्रबन्धका हाल बतलाये । पर जब अकबर जो कि, दो पीढीका ही नातारसे आया हुआ था और जिसके राज्यका सब इन्तिजाम यहींके हिन्दू मुसल.. मान विद्वानोंके हाथमें था, अपने प्रबन्धके लिये अच्छा गिना जाता है, तब फिर पीढ़ियोंसे जमे हुए विद्वान् राजाओंका प्रबन्ध तो क्यों नहीं अच्छा होगा। इसके उदाहरणस्वरूप हम राजाधिराज कलचुरी कर्णदवके एक दानपत्रसे प्रकट होनेवाली कुछ बातें लिखते हैं:__ “ राज्यका काम कई भागोंमें बटा हुआ था, जिनके बड़े बड़े अफसर थे । एक बड़ी राजसभा थी; जिसमें बैठ कर राजा, युवराज और सभासदोंकी सलाहसे, काम किया करता था। इन सभासदोंके औहदे अकबर वगैरा मुग़ल बादशाहोंके अरकानदोलत ( राजमंत्रियों ) से मिलते हए ही थेः १ महामन्त्री-वकील-उल-सल्तनत ( प्रतिनिधि ) २ महामात्य-वजीर-ए आजम । ३ महासामन्त-सिपहसालार ( अमीर-उल-उमरा, खानखानान)। ४ महापुरोहित-सदर-उल-सिदूर (धर्माधिकारी)। ५ महाप्रतीहार-मीरमंज़िल । ६ महाक्षपटलिक-मीरमुनशी (मुनशी-उल-मुलक )। ७ महाप्रमात्र-मीरअदल। ८ महाश्वसाधनिक-मीर-आखुर ( अख़ता बेगी)। (१) मारवाड़की मर्दुमशुमारीकी रिपोर्ट सन् १८९१, पृ. ३३ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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