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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३) क्षत्रपोंके सिक्कों आदिसे इस बातका पता नहीं चलता कि वे अपने देशसे कौनसा धर्म लेकर आये थे। सम्भव है कि वे पहले ज़रदश्ती धर्मके माननेवाले हों; जो कि सिकन्दरसे बहुत पहले ईरानमें ज़रदश्त नामके पैगम्बरने चलाया था। फिर यहाँ आकर वे हिंद और बौद्ध धर्मको मानने और हिंदुओं जैसे नाम रखने लगे थे। हैहय-वंश। क्षत्रप-वंशके बाद हैहय-वंशका इतिहास दिया गया है । साहित्याचार्यजीने इसको भी नई तहकीकातके आधारभूत शिलालेखों और दानपत्रों के आधार पर तैयार किया है । इतिहासप्रेमियोंको इससे बहुत सहायता मिलेगी। यह ( हैहय ) वंश चन्द्रवंशीराजा यदुके परपोते हैहयेसे चला है और पुरान जमानेमें भी यह वंश बहुत नामी रहा है। पुराणोंमें इसका बहुतसा हाल लिखा मिलता है। परन्तु इस नये सुधारके जमानेमें पुराणोंकी पुरानी बातोंसे काम नहीं चलता । इस लिये हम भी इस वंशके सम्बन्धमें कुछ नई बातें लिखते हैं । हैहयवंशके कुछ लोग महाभारत और अग्निपुराणके निर्माणकालमें शौण्डिक ( कलाल ) कहलाते थे और कलचुरी राजाओंके ताम्रपत्रोंमें भी उनको हैहयोंकी शाखा लिखा है । ये लोक शैव थे और पाशुपत पंथी होनेके कारण शराब अधिक काममें लाया करते थे। इससे मुमकिन है कि ये या इनके सम्बन्धी शराब बनाते रहे हों और इसीसे इनका नाम कलचुरी हो गया हो। संस्कृतमें शराबको ‘कल्य' कहते हैं और ‘चुरि का अर्थ 'चुआनेवाला' होता है। इनमें जो राजघरानेके लोग थे वे तो कलचुरी कहलाते थे और जिन्होंने शराबका व्यापार शुरू कर दिया वे ' कल्यपाल' कहलाने लगे, और इसीसे आजकलके कलवार या कलाल शब्दकी उत्पत्ति हुई है। जातियोंकी उत्पत्तिकी खोज करनेवालोंको ऐसे और भी अनेक उदाहरण मिल. सकते हैं । राजपूतानेकी बहुत सी जातियाँ अपनी उत्पत्ति राजपूतोंसे ही बताती हैं । वे पूरबकी कई जातियोंकी तरह अपनी वंशपरम्पराका पुराने क्षत्रियोंसे मिलनेका दावा नहीं करतीं जैसे कि उधरके कलवार, शौण्डिक और हैहयवंशी होनेका करते हैं। (१) उर्दूमें छपी हिन्दू क्लासिफिकल डिक्शनरी, पे० २९६ (२) जबलपुर-ज्योति, पृ. २४ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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