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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालवके परमार। कुन्तल-देशका परमर्दी शायद कल्याणका पश्चिमी चालुक्य राजा पेमें (पेर्माडी-परमर्दी ) हो । वह जगदेकमल्ल भी कहलाता था। यदि जगदेवको उदयादित्यका पुत्रका मान लें, जैसा कि भाटोंकी ख्यातोंसे प्रकट होता है, तो पृथ्वीराज चौहान और चन्देल परमर्दीकी लड़ाई तक उसका जीवित रहना असम्भव है । क्योंकि यह लड़ाई उदयादित्यके देहान्तके ८० वर्षसे भी अधिक समय बाद, वि० सं० १२३९ में, हुई थी। ___ पण्डित भगवानलाल इन्द्रजीका अनुमान है कि जगदेव, सिद्धराज जयसिंहकी माता मियणल्लदेवीके भतीजे, गोवाके कदम्बवंशी राजा जयकेशी दूसरेका, सम्बन्धी था । सम्भव है, वहीं कुछ समय तक सिद्धराजके पास रहनेके बाद, पेर्माडी (चौलुक्य राजा पेर्म) की सेवामें जा रहा हो और पेमांडीके सम्बन्धसे ही शायद परमार कहलाया हो। __ चालुक्य राजा पेर्म (जगदेकमल्ल) के एक सामन्तका नाम जगदेव था। वह त्रिभुवनमल्ल भी कहलाता था । वह गोवाके कदम्बवंशी राजा जयकेशी दूसरेकी मौसीका पुत्र था। माईसोरमें उसकी जागीर थी। उसका मुख्य निवासस्थान पट्टिपों बुच्चपुर-होंबुच या हुँच-( अहमदनगर जिले ) में था। उसका जन्म सान्तर-वंशमें हुआ था । वह वि० सं० १२०६ में विद्यमान था और पर्मेके उत्तराधिकारी तैल तीसरेके समय तक जीवित था । प्रबन्ध-चिन्तामणिका लेख भाटोंकी ख्यातोकी अपेक्षा पं० भगवानलाल इन्द्रजीके लेखको अधिक पुष्ट करता है । १२-लक्ष्मदेव । यह उदयादित्यका ज्येष्ठ पुत्र था । यद्यपि परमारोंके पिछले लेखों और ताम्रपत्रोंमें इसका नाम नहीं है, तथापि नरवर्माके समयके नागपुरके लेखमें इसका जिक्र है। यह लेख लक्ष्मदेवके छोटे भाईका १४१ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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