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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश है ( कहते हैं कि उसकी छाती पर स्तन-चिह्न न थे।) उसके सामने नम होनेसे लज्जा आती है। क्योंकि स्त्रियाँ स्त्रियोंहीके बीच यथेष्ट चेष्टा कर सकती हैं। ___ इस प्रकार उस वेश्याके मुखसे अपनी प्रशंसा सुनकर जगदेवने राजाकी दी हुई वह बहुमूल्य भेट उसी वेश्याको दे डाली। कुछ दिन बाद परमर्दीकी कृपासे जगदेव एक प्रान्तका अधिपति हो गया । उस समय जगदेवके गुरुने उसकी प्रशंसामें एक श्लोक सुनाया। इस पर जगदेवने ५०००० मुद्रायें गुरुको उपहारमें दी। परमर्दीकी पटरानीने जगदेवको अपना भाई मान लिया था । एक वार राजा परमर्दीने श्रीमालके राजाको परास्त करनेके लिए जगदेवको ससैन्य भेजा । वहाँ पहुँचने पर, जिस समय जगदेव देवपूजनमें लगा हुआ था, उसने सुना कि शत्रुने उसके सैन्य पर हमला करके उसे परास्त कर दिया है । परन्तु तब भी वह देव-पूजनको अपूर्ण छोड़कर न उठा। इतनेमें यह खबर दूतों द्वारा परमर्दीके पास पहुँची । उसने अपनी रानीसे कहा कि तुम्हारा भाई, जो बड़ा वीर समझा जाता है, शत्रुओंसे घिर गया है और भागने में भी असमर्थ है । इस पर उसने उत्तर दिया कि मेरे भाईका परास्त होना कभी सम्भव नहीं। इसी बीचमें दूसरी खबर मिली कि देवपूजन समाप्त करके जगदेवने ५०० योद्धाओं सहित शत्रु पर हमला किया और उसे क्षण भरमें नष्ट कर दिया। __ कुछ काल बाद इस परमर्दीका युद्ध सपादलक्षके राजा पृथ्वीराज चौहानके साथ हुआ। उससे भाग कर परमर्दीको अपनी राजधानीको लौटना पड़ा। प्रबन्ध-चिन्तामणिके कर्ताने कुन्तल-देशके राजा परमर्दाको तथा चौहान पृथ्वीराजके शत्रु, महोबाके चन्देल राजा परमर्दीको, एक ही समझा है । यह उसका भ्रम है । १४० For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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