SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश माना है । किन्तु राजतरङ्गिणीका कर्ता भोजसे बहुत पीछे हुआ था। इससे उसने गड़बड़ कर दी है। ताम्रपत्रों और शिलालेखोंसे सिद्ध है कि भोजका उत्तराधिकारी जयसिंह वि० सं० १११२ में विद्यमान था और उसका उत्तराधिकारी उदयादित्य वि० सं० १११६ में । अतएव कलशके समयमें भोजका होना स्वीकार नहीं किया जा सकता । फिर, भोजके देहान्त-समयमें भीमदेव विद्यमान था । यह बात डाक्टर बूलर भी मानते हैं। सम्भव है, भोजके बाद भी वह जीवित रहा हो। यदि भीमका देहान्त वि० सं० ११२० में हुआ तो भीमके पीछे भोजका होना उनके मतसे भी असम्भव सिद्ध नहीं। उदयपुर (ग्वालियर ) की प्रशस्तिमें निम्नलिखित श्लोक है, जिससे भोजके बनाये हुए मन्दिरोंका पता लगता है: केदार-रामेश्वर-सोमनाथ [ सु]-डीरकालानलरुद्रसत्कैः । सुराश्र[ यै ]ाप्य च यः समन्ताद्यथार्थसंज्ञां जगतीं चकार ॥ २० ॥ अर्थात्-~~-भोजने पृथ्वी पर केदार, रामेश्वर, सोमनाथ, सुंडीरे, काल (महाकाल ), अनल और रुद्रके मन्दिर बनवाये । भोजकी बनवाई हुई धाराकी भोजशाला, उज्जेनके घाट और मन्दिर, भोपालकी भोजपुरी झील और काश्मीरका पापसूदन-कुण्ड अब तक प्रसिद्ध हैं। ___ राजतरङ्गिणीका कर्ता लिखता है-“ पद्मराज नामक पान बेचनेवालेने, जो काश्मीर के राजा अनन्तदेवका प्रीतिपात्र था, मालवेके राजा भोजके भेजे हुए सुवर्ण-समूहसे पापसूदन कपटेश्वर ( कोटेर-काश्मीर ) का कुण्ड बनवाया । भोजने प्रतिज्ञा की थी कि पापसूदनके उस कुण्डसे नित्य मुख धोऊँगा । अतएव पद्मराजने वहाँसे उस तीर्थजलसे भरे हुए काचके कलश पहुँचाते रह कर भोजकी उस प्रतिज्ञाको पूर्ण किया । पापसूदनतीर्थ ( कपटेश्वर महादेव ) काश्मीरमें कोटेर गाँवके पास, For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy