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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारतके प्राचीन राजवंश Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जालोरके परमार । विक्रम संवत् १९७४ ( ईसवी सन् १९१७ ) आषाढ़ सुदि ५ का एक लेख मिला है । यह लेख जालोर के किलेके तोपखाने के पासकी दीवार में लगा है । इसमें परमारोंकी पीढ़ियाँ इस प्रकार लिखी गई हैं:१ - वाक्पतिराज | पूर्वोक्त लेखमें लिखा है कि परमार वंश में वाक्पतिराज नामक राजा हुआ । यद्यपि मालवेमें भी राजा वाक्पतिराज ( मुञ्ज) हुआ है तथापि उसके कोई पुत्र न था । इसी लिए अपने भाईके लड़के भोजको उसने गोद लिया था । पर लेखमें वाक्पतिराज के पुत्रका नाम चन्दन लिखा है । इससे प्रतीत होता है कि यह वाक्पतिराज मालवेके वाक्पतिराज से भिन्न था । २ - चन्दन | यह वाक्पतिराजका पुत्र था और उसके पीछे गद्दी पर बैठा । ३- देवराज | यह चन्दनका पुत्र और उत्तराधिकारी था । ४- अपराजित | इसने अपने पिता देवराजके बाद राज्य पाया । ५ - विज्जल | यह अपने पिता अपराजितका उत्तराधिकारी हुआ । ६ - धारावर्ष । यह विज्जलका पुत्र था तथा उसके बाद राज्यका अधिकारी हुआ । ७-बीसल । धारावर्षका पुत्र बीसल ही अपने पिताका उत्तराधिकारी हुआ । इसकी रानी मेलरदेवीने सिन्धुराजेश्वर के मन्दिर पर सुवर्ण कलश चढ़ाया, ८६ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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