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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Di w an ४५४ भारत-भैषज्य-रत्नाकर [हकारा (८५०६) हिग्वादिचूर्णम् (१९) हींग, सांठ, बायबिडंग और सञ्चल (का (व. से. । स्त्रीरोगा.) नमक ) समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । हिडपिप्पलिपाटल्यौ भाजीमेदामहौषधम् । । इसे २॥ तोले पानीमें मिलाकर पीनेसे भस्रा. रास्नामतिविषाचव्यमेभिर्दोषः प्रसिध्यति ॥ | तिसारका नाश होता है। योनिश्च मृद्वी भवति योनिशूलश्च शाम्यति ॥ | (मात्र हींग, पीपल, दो प्रकारका लोध, भरंगी, मेदा, (८५०९) हिग्वादियोगः (१) सेठ, रास्ना, अतीस और चव समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । (इ. नि. र. । छर्य.) __ इसके सेवनसे योनि दोष और योनिशल नष्ट | हिर्जुना सारिवामूलं सर्ववान्तिहरं परम् । होकर योनि मृदु हो जाती है। जातीफलं वमौ शोषे जागरे विप्रयोजयेत् ॥ (मात्रा-१॥ मोशा ।) हींग और सारिवामूल समान भाग ले कर (८५०७) हिग्वादिचूर्णम् (२०) चूर्ण बनावें । ( भै. र. ; ३. मा. ; व. से. | शूला.) ___ यह चूर्ण हर प्रकारको वमनको नष्ट करता है। हिवम्लकृष्णामलकं यवानी (मात्रा-१-१ रत्ती चूर्ण १-१ धंटाबाद क्षाराभयासैन्धवतुल्यभागम् । पानीसे दें ) जायफल भी वमन, शोष और निद्राचूर्ण पिधेद्वारुणिमण्डमिश्रं नाशको नष्ट करता है। शूले प्रवृद्धेऽनिलजे शिवाय ।। • मात्रा-१ रत्ती । पानीमें घिसकर १-१ हींग, अम्लवेत, पीपल, आमला, अजवायन, घंटा बाद पिलावें ।) जवाखार, हर्र और सेंधा नमक समान भाग लेकर (८५१०) हिङ्ग्वादियोगः (२) चूर्ण बनावें । (वा. भ. । चि. अ. १५) इसे सुरामण्ड (मथके ऊपरके स्वच्छ भाग) के हिपकुल्ये त्रिफलां देवदारु निशाद्वयम् । साथ सेवन करने से प्रवृद्ध वातज शूल नष्ट भल्लातकं शिग्रुफलं कटुका तिक्तकं वचाम् ॥ होता है। शुण्ठी माद्री घनं कुठं सरल पटुपश्चकम् । (मात्रा-१ माशा।) दाहयेज्जर्जरीकृत्य दधिस्नेहचतुष्कवत् ।। (८५०८) हिङ्ग्वादिजलयोगः अन्तधूमं ततः क्षाराढिडालपदकं पिबेत् ( वृ. नि र. । अतिसारा.) मदिरादधिमण्डोष्णजलारिष्ट मुरासवैः ॥ डिङ्गुशुण्ठीविडङ्गं च सौवर्चलसमन्वितम् । उदरं गुल्ममष्ठीला तून्या शोफ विचिकाम् । कर्षयुग्ममितं तोयं भक्षितं भसरापहम् ।। । प्लीहाद्रोगगुदनानुदावत च नाशयेत् ।। a wwameenCATIODERARMARREARRINTERA For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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