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चूर्णप्रकरणम् ] पश्चमो भागः
४५३ हींग १ भाग, बहेड़ा २ भाग, अदरक (सांठ), भावितं मातुलुङ्गस्य चूर्णमेतद्रसेन वा। ३ भाग और करञ्ज बीज ४ भाग लेकर चूर्ण बनावें। बहुशो गुटिका कार्याः कार्मुकाः स्युस्ततोऽ. इसे जलके साथ सेवन करने से शूल नष्ट ।
धिकाः॥ होता है।
। हींग, सोंठ, मिर्च, पीपल, पाठा, हपुषा गुडमें हर्र का चूर्ण मिला कर खानेसे या घी के । हर्र, कचूर, अजमोद, अजवायन, तिन्तडीक, साथ ल्हसन खानेसे भी शूल नष्ट हो जाता है। अम्लवेत, अनारदाना, पोखरमूल, धनिया, जीरा, ( मात्रा-२-३ माशे।)
चीतामूल, बच, जवाखार, सज्जीखार, सेंधानमक,
सञ्चल ( काला नमक ), और चव्य समान भाग (८५०५) हिङ्ग्वादिचूर्णम् (१८)
लेकर चूर्ण बनावें । (ग, नि. । चूर्णा. ३; व. से. । गुल्मा. ; यो.. इस चूर्णको नीबूके रसकी अनेक भावनाएं त.। त. ४६; वृ. नि. र.। वातव्याध्य. ; देकर गोलियां भी बना सकते हैं। भा. प्र. म. खं. २ । वातव्या. गुल्मा. ;
। इसे भोजनके आरम्भ में मद्य अथवा उष्ण यो. र. । गुल्मा.; भा. प्र. म. खं. २ ।
जलके साथ सेवन करामा चाहिये । गुल्मा. ; सु. सं. । चि. स्था. अ. ५;
इसके सेवनसे पार्श्वशल, हृदयशूल, वस्तिशूल, वै. जी. । वि. ३; वृ. यो. त.त.
वातकफज गुल्म, अफारा, मूत्रकृच्छ, गुदपीड़ा, ९०, ९४ ; मै. र. ; धन्व. ; र.
योनिशल, ग्रहणी विकार, अर्श, प्लीहा, पाण्डु, र. । गुल्मा.; च. सं. । चि. अ.
अरुचि, छातीकी जकड़ाहट, हिचकी, श्वास, कास ५ गुल्मा. ; शा. ध.। ।
और गलग्रहका नाश होता है ।* खं. २ अ. ६)
(मात्रा-२ माशे ) हिशु त्रिकटुकं पाठां हवुषामभयां शटीम् ।
*पाठान्तर-- अजमोदाजगन्धे च तिन्तिडीकाम्ळवेतसौ॥ । सुश्रुत तथा ग. नि. के मतानुसार पीपलामूल दाडिमं पौष्करं धान्यमजाजी चित्रकं वचाम् । और भिलावा अधिक हैं तथा अद्रकके रसकी द्वौ क्षारौ लवणे द्वे च चव्यश्चैकत्र चूर्णयेत् ॥ भावनायें भी लिखी हैं। चूणेमेतत्पयोक्तव्यमनुपानेष्वनत्ययम् । . वै. जीवन में शटी के स्थान पर करंज है पाग्भक्तमथवा पेयं मधेनोष्णोदकेन वा ॥ और दाडिमका अभाव है। पार्थहृदस्तिशूलेषु गुल्मे वात कफात्मके। वृ. नि. र. के मतानुसार दाडिम ( अनार . आनाहे मूत्रकृच्छेषु गुदयोनिरुजासु च ॥ दाने )के स्थानमें सारिवा है तथा अभ्रकभस्म, ग्रहण्यर्थीविकारेषु लोहि पाण्डवामयेऽरुची। । तीक्ष्णलोहभस्म, लौंग और तुम्बरु अधिक है । शा. उरोविवन्धे हिकायां पासे कासे गलाहे ॥ ध. के मतानुसार पंच लवण लेने चाहिएं।
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