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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org भारत - भैषज्य - रत्नाकरः ३५८ महोदरा नष्ट पञ्चगुल्मानामपि पञ्च च । अरोचकं पञ्चकासं पञ्चश्वासं जडं हरेत् ॥ स्थिरायुः कार्यसिद्धिश्च मेध्यं चाऽऽशु शुभप्रदम् । अनुपानविशेषेण सर्वरोगनिवारणम् ॥ इति धन्वन्तरोक्तं सिन्दूरं लोकपूजितम् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ सकारादि इसे खांड, शहद और पीपल के चूर्णके साथ मिलाकर प्रातः काल सेवन करना चाहिये । इसके सेवन से ११ प्रकारका क्षय, १३ प्रकारका सन्निपात, आमवात, शूल, पाण्डु, कामला, ८ प्रकार के उदररोग, ५ प्रकारके गुल्म, अरुचि, कास, श्वास और जड़ताका नाश होकर आयु स्थिर होती है । यह रस मेध्य है और अनुपान भेद समस्त रोगों को नष्ट करता है । शुद्ध गन्धक २० तोले, शुद्ध पारद २० तोले, शुद्ध हरताल ५ तोले, शुद्ध मनसिल २॥ तोले, सुहागा २ ॥ तोले और नौसादर १| तोला लेकर सबको एकत्र मिलाकर खरल करें | जब कंज्जली हो जाय तो उसे शाकवृक्षके पत्तों से निकाले हुवे लालरंग के रसमें अच्छी तरह खरल करें और फिर आतशी शीशीमें भरकर उसके मुख को खिड़िया डाटसे बन्द कर दें और शीशीके ऊपर वज्रमृत्तिकाके सात लेप करके तेज धूपमें सुखावें । तदनन्तर उसे बालुकायन्त्रमें रख कर १६ पहर मृदु, मध्यम और तीव्रानि पर पकावें । इसके पश्चात् शीशीके स्वाङ्गशीतल होने पर उसमें से रसको निकालकर पीस लें और उसमें उसका सोलहवां भाग उपरोक्त पारद गन्धक आदि द्रव्योंका ऊपर लिखित परिमाणसे बनाया हुवा मिश्रण मिला सुरङ्गोऽग्रिसहः स्त्रिग्धः सूक्ष्मः स्वच्छो गुरुर्मृदुः।। सुवर्णाकरजः शुद्धः सिन्दूरो मङ्गलप्रदः । दुग्धाम्लयोगतस्तस्य विशुद्धिर्गदिता बुधैः ॥ मतान्तरम् - कर शाकवृक्षके पत्तोंके रसमें खरल करें और फिर | सिन्दूरं निम्बुकद्रावैः पिष्ट्वा धर्मं विशोषयेत् । उपरोक्त विधिसे पाक करें । इसी प्रकार ७ बार | ततस्तण्डुलतोयेन तथाभूतं विशुद्धयति ॥ पाक करें। हर बार तैयार रसका सोलहवां भाग पारद गन्ध आदिका मिश्रण मिलाना चाहिये । अन्तमें इसको पीस कर हाथीदांतकी शीशी में भर कर सुरक्षित रक्खं । मात्रा - १ रत्ती | (८२२८) सिन्दूर शोधनम् ( आयु. वे. प्र. । अ. १२ ) सिन्दूरं रक्त रेणुश्च नागगर्भे च सींसकम् । सीसोपधातुः सिन्दूरं गुणैस्तत्सीसवत्मतम् ॥ संयोगजप्रभावेण तस्याप्यन्ये गुणाः स्मृताः । सिन्दूरमुष्णं वीस कुष्ठकण्डुविषापहम् || भग्नसन्धानजननं व्रणशोधनरोपणम् । रक्तरेणु, नागगर्भ, सीसक, सीसोपधातु और सिन्दूर; ये सब एक ही पदार्थके नाम हैं । सिन्दूर में सीसे के समान ही गुण होते हैं और अन्य पदार्थों का योग होनेसे उसके गुणोंमें भी अन्तर आ जाता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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