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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०० www. kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः अथ सकारादिरस-प्रकरणम् (८९२०) सङ्कोचगोलरसः ( रसेन्द्र मं. । कुष्टा.) अमृतविषपटलं निम्बपचाङ्गयुक्तं, त्रिफलखदिरसारं व्याधिघातञ्च तुत्थम् । रसपलघनमेकं गुग्गुलोर्भागयुक्तं, जयति विषविस कुष्ठराशि जवेन || शुद्ध बछनाग २ भाग, पटोल, नीमका पञ्चाङ्ग, हर्र, चहेड़ा, आमला, खैरसार, अमलतासकी जड़ की छाल, शुद्ध नीलाथोथा, रससिन्दूर, जटामांसी, अभ्रक भस्म और शुद्ध गूगल १ – १ भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर अच्छी तरह खरल करें । इसके सेवन से विष, विसर्प और कुटका नाश होता है। (८१२१) सङ्कोच पिष्टिकारसः ( रसेन्द्र मं. । वाता. ) शुद्ध पारद ४० तोले और शुद्ध ताम्रका बारीक चूर्ण १० तोले ले कर दोनोंको एकत्र मिला कर खरल करें; यहां तक कि दोनों अच्छी तरह मिल कर पिष्टी हो जाय । तदनन्तर १० तोले शुद्ध गन्धकको १० तोले सरसेकि तेलमें मिलाकर मन्दान पर पकायें | जब गन्धक पिघल जाय तो उसमें उपरोक्त पिष्टी मिला दें और इतनी धीमी आग पर पकाते रहें कि जिससे पारद उड़ न जाए | जब गन्धक समाप्त हो जाए तो अग्निसे नीचे उतार लें और सोंठ, मिर्च, पीपल, बच, नागरमोथा, बायबिडंग, चीता और शुद्ध बछनांग; इनका चूर्ण १ - १ भाग तथा हर्र का चूर्ण ३ भाग लेकर सबको एकत्र मिला लें और उपरोक्त तैयार शुद्धस्तपलान्यष्टौ शुद्धताम्रपलद्वयम् 1 खल्वे सङ्घष्य यत्नेन कारयेत्पिष्टिकां बुधः ॥ औषधमें यह चूर्ण उसके बराबर मिला कर, शहद के साथ खरल करके आधी या एक एक रत्ती की गोलियां बना लें | मात्रा एक गोलीसे सात गोली तक । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गन्धकस्य पले द्वे तु कटुतैलेन पाचयेत् । तन्मध्ये पिष्टिकां पाच्या भिषजा यत्नपूर्वकम् ।। तत उद्धृत्य यत्नेन यथा नोड्डीयते रसः । aat योज्यानि वैद्येन भैषज्यानि शुभानि वै ।। कटुत्रयं वचा मुस्ता विडङ्गं चित्रकं विषम् । समभागानि चैतानि पथ्या च त्रिगुणा विषात् । [ सकारादि मधुना मर्दयित्वा तु गुटिकाः कारयेद्भिषक् । गुआ अर्धमात्रा वा एकैकां भक्षयेद्बुधः ॥ ज्ञात्वा बलाबलं सवं द्वे द्वे वा दापयेद्बुधः । गुटिका सप्तपर्यन्तं यथायोगेन दीयते || सङ्कोचपिष्टिका ह्येषा प्रसूतौ वातनाशिनी । अन्ये ये वातजा रोगा तान् कुष्ठांश्च व्यपोहति।। For Private And Personal Use Only ( व्यवहारिक मात्रा - १ से २ गोली तक । ) इसके सेवन से प्रसूत- बात तथा अन्य समस्त वातज रोग और समस्त कुष्ठोंका नाश होता है ।
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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