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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ सकारादि सरल वृक्ष (चीर) का काष्ठ, अगर, कूठ, झिण्टीमूलके मन्दोष्ण काथमें कत्था और देवदारु और सेठ, समान भाग मिलित् (१ तोला) शहद मिला कर वह काथ बार बार मुंहमें भरनेसे ले कर गोमूत्र या कांजोमें पीस कर पीनेसे कफ- | दन्तपीडा, मसूढोंकी सूजन और दातविधिका वातज शोय नष्ट होता है।। नाश होता है। (७७८१) सहचरादिक्वाथः (१) । (७७८४) सहचरादिक्वाथः (४) (भै. र. । स्त्री. ; ग. नि. । सूतिका. ; वृ. यो. (र. र. । स्त्रीरोगा. ; भै. र । स्त्री.) त.। त. १४२; यो. र. । स्त्री.) सहचरमुस्तगुडूचीभद्रो. सहचरपुष्करवेतसमूलं स्कटबिल्ववालको क्वथितम् । विकतदारुकुलत्यसमम् । पेयमिदं मघुमिश्र सयो जलमत्र ससैन्धव हिचुतं ज्वरशूलनुत्सत्यम् ॥ __ सद्यो ज्वरसूतिकाशूलहरम् ।। झिण्टीमूल, नागरमोथा, गिलोय, प्रसारिणी, झिण्टीमूल, पोखरमूल, अम्लबेतकी जड़, | बेलछाल और सुगन्धवाला समान भाग ले कर कण्टाई, देवदारु और कुलथी समान भाग ले कर काथ बनावें । इसमें शहद मिला कर पीनेसे प्रसूताका ज्वर इसमें सेंधा नमक और हींग मिला कर पीनेसे | और शूल शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । सूतिका ज्वर शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। | (७७८५) सहचरादिक्वाथः (५) (७७८२) सहचरादिक्वाथ: (२) (र. र. । स्त्री. ; भै. र.) (यो. र. । वातव्या. ; वृ. यो. त. । त. ९०) सहाचरकुन: क्वाथः पिप्पलीचूर्ण मिश्रितः । सहचरामरदारुसनागरं दीपनो ज्वरदोषामसूतिकारोगनाशनः ।। क्यथितमम्भसि तैलविमिश्रितम् ।। झिण्टीमूलके क्वाथमें (१ रत्ती) पीपलका पवनपीडितदेहगतिः पिबन् चूर्ण मिला कर पिलानेसे प्रसूताकी अग्नि दीप्त होती द्रुतविलम्बितगो भवतीच्छया ॥ तथा आम और ज्वरका नाश होता है। झिण्टीमूल, देवदारु और सेठ समान भाग (७७८६) सारिवादिक्वाथः (१) ले कर काथ बनावें । इसमें तिलका तेल मिलाकर (ग. नि. । विसा.) पीनेसे वातव्याधि नष्ट होती है । सारिवामुस्तकोशीरधात्रीभिः परिसाधितम् । (७७८३) सहचरादिक्वाथः (३) कषायं च पिवेदाशु सर्ववीसर्पनाशनम् ॥ (वृ. यो. त. । त. १२८) सारिवा, नागरमोथा, खस और आमला; कोष्णं सहचरक्वार्थ खदिरौद्रसंयुतम् । इनका काथ सर्व प्रकारके विसर्प रोगको शीघ्रही धृत्वाऽऽस्येन मुहुर्हन्ति तद्व्यथाशोथविद्रधीन् । नष्ट कर देता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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