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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] पञ्चमो भागः इसे भोजनके उपरान्त ( पानीमें डालकर )। नोट-औषध वाली कूपी तथा दूसरी सेवन करना चाहिये । कांचक्री शीशी पर सात कपरमिट्टी कर देनी (मात्रा-१-२ बूद) चाहिये। (७५४१) शङ्खद्रावरसः मात्रा-४ माशा । (व्यवहारिक मात्रा(र. सं. क. । उल्ला . ४) ८-१० बूंद) फिरी सादरं सोरं त्रयमेकत्र चूर्णयेत् । इसे इस प्रकार पीना चाहिये कि दांतोंको तक्षिपेन्मृण्मये कूपे नालहस्तमिते दृढे ॥ न लगे । सरन्ध्रोदरकाचोत्थे कूपे तत्सन्नियोजयेत् । । इसके सेवनसे गुल्म, यकृत, प्लीहा, प्रन्थि सप्तधा वेष्टयेत्पश्चात्कूपको वस्त्रमृत्स्नया | और शूलका नाश होता तथा बल पुष्टि की वृद्धि खर्परे वालुकापूणे तिर्यगौषधकूपकम् । . होती है । एवं भोजन शीघ्र पच जाता है। अर्ध यन्त्रे निधायाथ श्रीगुरोः संपदायतः॥ इसमें कौड़ी, लोह और शंख डाल देनेसे वे अधोमुखं, द्वितीयं तु स्थाप्यं चुल्ले पराङ्मुखे। गल जाते हैं। अधः प्रज्वालयेदग्निं हठायावद्रसः सवेत् ॥ धारयेत्काचजे पात्रे शङ्खद्रावं रसायनम् । शहद्रावरसः शाणैक सेवयेत्पश्चादन्तस्पर्शविवर्जितम् ॥ प्र. ५६९८ महाद्रावकम् देखिये । गुल्मोदरयकृप्लीह विद्रधिग्रन्थिशूलनुत् । शङ्खद्रावरसः (महा) बलपुष्टिप्रदो ह्येष भुक्तं जारयते क्षणात् ॥ प्र. सं. ५६९९ महादावकरसः देखिये । विलोक्यतामहो लोका रसमाहात्म्यमद्भतम् । (७५४२) शङ्खनाभिचूर्णम् कपर्दकाम्बुलोहानि यस्मिन् क्षिप्ते गलन्ति हि ॥ ( वृ. यो. त.। तं. १०५; यो. र. ; व. फिटकरी, नौसादर और शोरा समान भाग लेकर सबको एकत्र पीस लें और एकमिट्टीको कूपी से. । उदरा.) में भरदें । इस कूपीमें १ नाल लगादें और चूल्हे रसेन जम्बीरफलस्य शङ्खपर रेतीमें भरी हुई हांडी रख कर उसमें यह कूपी | नाभिरजः पीतमवश्यमेव । तिरछी करके रख दें। कूपोका आधा भाग रेतके कर्षप्रमाणे शमयेदशेष भीतर दबा देना चाहिये। एवं नालका दूसरा सिरा प्लीहामयं कूर्मसमानमाशु ॥ दूसरी कांचकी शीशीके मुखमें लगादे और चूल्हे में शंखनाभिके १। तोला चूर्णको जम्बीरी भग्नि जलावें। नीबूके रसके साथ सेवन करनेसे अत्यन्त प्रवृद्ध इससे जो अर्क निकले उसे सुरक्षित | प्लीहा भी ठीक हो जाती है। रखें। ( व्यवहारिक मात्रा-१ माशा ।) For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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