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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७९४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि (७१०४) वृहज्जीरकादिमोदकः जीरा, काला जीरा, कूठ, सोंठ, पीपल, काली ( भै. र. । ग्रहणी.) | मिर्च, हर्र, बहेड़ा, आमला, दालचीनी, तेजपात, जीरकं कृष्णजीरश्च कुष्ठं शुण्ठी च पिप्पली। इलायची, नागकेसर, बंसलोचन, लौंग, छरीला, मरिचं त्रिफला त्वक् च पत्रमेला च केशरम् ।। सफेद चन्दन, काकोली, क्षीरकाकोली, जावित्री, शुंभा लवङ्गं शैलेयं चन्दनं श्वेतचन्दनम् ।। जायफल, मुलैठी, सौंफ, जटामांसी, नागरमोथा, काकोली क्षीरकाकोली जातीकोषफले तथा । सञ्चल नमक, कचूर, धनिया, देवताड़ (देवदाली) यष्टी मधूरिका मांसी मुस्तं सञ्चलकं शटी। मुरामांसी, मुनक्का, नखी, सोया, पद्माक, मेथी, धन्याकं देवताडश्च मुरा द्राक्षा नखी तथा ॥ देवदारु, सुगन्धबालो, नालुका, सेंधा नमक, गजशतपुष्पा पद्मकश्च मेथी च सुरदारु च ।। पीपल, कपूर, रेणुका और कुन्दखोटी (शल्लकी सजलं नालुका चैव सैन्धवं गजपिप्पली ॥ वृक्षका निर्यास ); इनका चूर्ण १-१ भाग एवं कपूरं वनिताचैव कुन्दरखोटी समांशिकम् । अभ्रक भस्म, वंग भस्म और लोह भस्म २-२ अभ्रवङ्गकलौहानां द्विभागं तत्र दापयेत् ।। भाग तथा इन सबके बराबर भुने हुवे जीरेका चूर्ण एतानि समभागानि श्लक्ष्णचूर्णानि कारयेत् । ले कर सबको एकत्र मिलावें और इस समस्त सर्वचूर्णसमं देयं भृष्टजीरस्य चूर्णकम् ॥ चूर्णको इससे दो गुनी खांडकी चाशनीमें मिला सिता द्विगुणिता देया मोदकं परिकल्पयेत् । कर उसमें थोड़ा थोड़ा घी और शहद मिलावें घृतेन मधुना मिश्रं मोदकश्च भिषग्वरः ॥ | तथा मोदक बना कर सुरक्षित रक्खें । भक्षयेत्पातरुत्थाय यथादोषबलाबलम् ।। इन्हें प्रातःकाल मिश्रीयुक्त गोदुग्धके साथ गव्यं सशर्करश्चैव अनुपानं प्रयोजयेत् ॥ सेवन करनेसे समस्त वातज और पित्तज रोग, अशीतिं वातजान् रोगांश्चत्वारिंशच्च पैत्तिकान नाना वर्णवाला अतिसार, विशेषतः आमातिसार, सास्तानाशयत्याशु वृक्षमिन्द्राशनिर्यथा ॥ आठ प्रकारका शूल, पुरानी अर्श, सतत जीर्णनानावर्णमतीसारं विशेषादामसम्भवम् ।। ज्वर, विषम ज्वर, 3 सूतिका रोग, प्रदर और हर शूलमष्टविधं हन्ति अरोग चिरोद्भवम् ॥ प्रकारकी दाहको शीघ्रही नाश हो जाता है जीर्णज्वरश्च सततं विषमज्वरमेव च । तथा दुर्बल और सन्तान हीन स्त्रियोंको पुत्रप्राप्ति स्त्रीणाश्चैवानपत्यानां दुर्बलानाश्च देहिनाम् ॥ होती है। पुष्पकव पुत्रकृच्चैव बलवर्णकरं परम् । __(७१०५) वृहज्ज्वरचूड़ामणिरसः मृतिकारोगमत्युग्रं नाशयेनात्र संशयः ॥ (रसे. सा. सं. । ज्वरा.) प्रदरं नाशयत्याशु सूर्यस्तममिवोदितः। मुवर्णसिन्दरं स्वर्ण लोहं तारं मृगाङ्कजम् । दाहं सर्वाङ्गिकञ्चैव वातपित्तोत्थितश्च यत् ।। जातीफलं जातिकोषं लवङ्गश्च त्रिकण्टकम् ॥ अयं सर्वगदोच्छेदी जीरकायो हि मोदकः ॥ कर्पूरं गगश्चैव चोचं मुसलि तालकम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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