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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७९३ रसप्रकरणम् ] - चतुर्थों भागः शाणभागं समादाय चैकीकृत्य परवतः। | भागी वासा च निर्गुण्डी नागवल्ली जयन्तिका। मधुना मईये तावद्यावदेकत्वागतम् ॥ कार वेल्लं पटोलश्च शक्राशनं पुनर्नवा ॥ चतुर्गुञ्जाममाणेन वटिकां कुरु यत्रतः ।। आर्द्रकश्च ततो दद्यात्मत्येकं वारसप्तकम् ।। भक्षयेटिकामेकां पिप्पलीमधुना सह ॥ चिन्तामणिरसो नाम सर्वज्वरविनाशनः ।। - शुद्ध पारद और गन्धक ११-१॥ तोला, क ११-१॥ तोला. वातिकं पैत्तिकञ्चैव श्लैष्मिकं सान्निपातिकम् । अभ्रक भस्म २॥ तोले, कपूर ३॥ मोशे, स्वर्ण द्वन्द्वजं विषमाख्यश्च धातुस्थश्च ज्वरंजयेत् ॥ भस्म ७॥ माशे, ताम्र भस्म ७॥ माशे, लोह भस्म | कासं श्वास तथा शोथं पाण्डुरोगं हलीमकम् । १। तोला तथा विधारामूल, जीरा, विदारीकन्द, | प्लीहानमग्रमांसश्च यकृतश्च विनाशयेत् ॥ शतावर, तालमखाना, खरैटो, कौंच के बीज, कंघी, शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, लोह भस्म, ताम्र जायफल, जावत्री, लौंग, भांगके बीज और सफेद भस्म, चांदी भस्म, वर्ण भस्म, शुद्ध हरताल, राल; इनका चूर्ण ३॥-३॥ माशे ले कर प्रथम खपरिया, कांसी भस्म, बंग भस्म, प्रवाल (मुंगा) पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें भस्म, मोती भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म, शुद्ध अन्य ओषधियां मिला कर शहदके साथ अच्छी | कसीस, शुद्र मनसिल, सुहागे की खील और कपूर तरह खरल करके ४-४ रत्तीकी गोलियां समान भाग ले कर प्रथम पारे गंधककी कज्जली बना लें। बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियां मिला कर इनमेंसे प्रति दिन १-१ गोली पीपलके भरंगी, बासा (अडूसा), संभालु, पान, जयन्ती, चूर्ण और शहद के साथ सेवन करनेसे क्षयका नाश करेला, पटोल ( परवल ), भांग, पुनर्नया (बिसहोता है। खपरा ) आर अदरकके रसकी पृथक् पृथक् सात वृहच्चन्द्रोदयमकरध्वजः सात भावना दे कर (२-२ रत्तीकी ) गोलियां ( पूर्णचन्द्रोदयो रसः ) बना लें। प्र. सं. १९०८ चन्द्रोदयो रसः (५) ___ इनके सेवनसे वातज, पितज, कफज, साग्निदेखिये। पातिक, द्वन्द्वज, विषम और धातुगत आदि हर (७१०३) वृहच्चिन्तामणिरसः प्रकारके ज्वर तथा कास, श्वास, शोथ, पाण्डु, हलीमक, प्लीहा, अग्रमांस और यकृत् रोगोंका ( रसे. सा. सं. । ज्वरा.) नाश होता है। रसगन्धकलोहानि ताम्र तारं हिरण्यकम् । हरितालं खपरश्च कांस्यं वङ्गश्च विद्रुमम् ॥ वृहच्चूडामणिरसः मुक्तामाक्षिककाशीशं शिला टङ्कणकं समम् । प्र. सं. १९४० चूडामणि रसः ( वृहत ) करिश्च समं दत्त्वा भावना सप्तसप्तकम् ॥ । देखिये। १०० For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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