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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्यों भागः ७६९ आमला, निसोत, दन्तोमूल, धतूरा, आककी जड़की भस्म, ताम्र भस्म, (पाठान्तरके अनुसार छाल और शुद्ध बछनोग १-१ भाग तथा शुद्ध स्वर्ण भस्म ) शुद्ध मनसिल और शुद्ध पारद जमालगोटा सबके बराबर ले कर प्रथम पारे गन्धक- समान भाग ले कर प्रथम पारे गंधककी कजली की कन्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओष- बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियां मिला कर धियोंका बारीक चूर्ण मिला कर सबको कई दिन सबको १-१ दिन पीपलके क्वाथ और सेंड तक स्नुही (सेंड-थूहर ) के दूधमें खरल करें । (थूहर) के दूधमें खरल करके आधा आधा रत्तीकी और फिर दन्तीमूलके काथमें घोट कर २-२ गोलियां बना लें। रत्तीकी गोलियां बना लें। इसे शहदके साथ सेवन करनेसे गुल्म और इनके सेवनसे आम, ज्वर, पाण्डु, गुल्म, प्लीहादिका नाश होता है । संग्रहणी, अर्श, वातपीडा, अजीर्ण, आमयुक्त कृमि ___अनुपान-गोदुग्ध या गोमूत्र । रोग और प्लीहाका नाश होता है । (७०४५) विद्याधरलोहम् ( अनुपान-शीतल जल। यह रस तीब्र (र. र. । अर्शी.) रेचक है।) स्वच्छ पत्रीकृतं लोहं पलं लिप्तश्च निर्वपेत् । (७०४४) विद्याधररसः लवणर्माक्षिकोपेतैत्रिफलाकार्षिकोदके ॥ ( रसें. सा. सं. ; धन्व. ; र. रा. सु. ; र. | सुषिक्तं लोहमादाय पूर्त सञ्चयं यत्नतः । र. ; वै. र. ; र. म. ; र. चं. । गुल्मा. ; र. प्र. पुटैर्यथाच्याधिहरैव्यैः सम्पादितैः पचेत् ॥ सु. । अ. ८ ; रसें. चि. म. । अ. ९ ; शा. ध.। पिण्डेन शर्करा काथः कलम्ब्या बहुपत्रतः । खं. २ अ. १२ ; र. चि. म. । स्त. ११: ३. करिकर्णपलाशस्य लवणैरप्यरुष्करैः ।। यो. त. । त. ९.८ ; र. का. धे. । उदर रो. ; चतुर्गुणे फलरसे लोहाध घृतयोजितम् । र. र. स. । अ. १८) पाचयेन्निपुणस्तावद्यावत्सपिविमुञ्चति ॥ गन्धकं तालकं ताप्यं मृतं तानं मनःशिला। षोडशाश क्षिपत्तत्र ततः संशोधित रसम् । शुद्धमूतश्च तुल्यांशं मर्दयेद्भावयेदिनम् ।। | राजिकापिण्डमध्ये तु व्योषपिण्डस्य मध्यगम् ॥ पिप्पल्याश्च कषायेण वनीक्षीरेण भावयेत् । गवां मले तुषाग्नौ च वस्त्रातञ्च काजिकैः। गुआर्द्ध सेवितं क्षौदैर्गुल्मप्लीहादिकं जयेत् ॥ सिद्धं सप्ताहमेवन्तु ततः सञ्चूर्णयेत्पुनः ॥ रसो विद्याधरो नाम गोदुग्धश्च पिवेदनु ॥ | चिश्चाकषायज्येष्ठाम्बुक्षीरनिर्वापितेन तु । शुद्ध गंधक, शुद्ध हरताल, स्वर्ण माक्षिक द्विगुणेन गन्धकशिलासुश्लक्ष्णरजसा पुनः ॥ पादं विडङ्गमुस्तानि त्रिफलाव्योषजं रजः । १ गोमूत्रमिति पाठान्तरम् । लोहादेकीकृतं पिष्टमनुगुप्तं निधापयेत् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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