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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि . वासा [अडूसा), बायबिडंग, नीमकी छाल, _ (६५२३) विडङ्गादिक्वाथः (२) पटोल, पाठा, सेांठ, देवदारु, दशमूल और हर्रका ( भै. र. । अर्शा.) काथ वातज कुष्ठको नष्ट करता है । विडङ्गपत्रकेशरशुण्ठीसमैला (६५२१) वासादिक्वाथः (५) । कुस्तुम्बुरुधान्यकतिलानाम् । (ग. नि. । श्वयथु. ३३ ; र. र. । अम्लपित्ता.) क्याथो हरीतकीसर्पिर्गुडेन सिंहास्यामृतभण्टाकीक्वार्थ पीतो निहन्ति गुदे गुदजानि ॥ पीत्वा समाक्षिकम् । बायबिडंग, तेजपात, नागकेसर, सोंठ, इलाकृच्छ्रशोथं जयेज्जन्तुः यची, नेपाली धनिया, धनिया और तिल समान कासं श्वासं ज्वरं वमिम् ॥ भाग ले कर क्वाथ बनावें । बासा (अडूसा), गिलोय और बड़ी कटेली | इसमें हर्रका चूर्ण, गुड़ और घी मिला कर समान भाग ले कर क्वाथ बनावें । पीनेसे अर्शका नाश होता है । इसमें शहद मिला कर पीनेसे मूत्रकृच्छ, । (६५२४) विडङ्गादिक्वाथः (३) शोथ, खांसी, श्वास, ज्वर और वमनका नाश ( वृ. नि. र. । अतिसारा. ; व. से. ; वृ. मा.) होता है। विडङ्गातिविषामुस्ता दारुपाठाकलिङ्गकम् । वासादिक्वाथः (६) (महा) मरीचेन समायुक्तं शोथातीसारनाशनम् ॥ (यो. त. । त. ७१) बायबिडंग, अतीस, नागरमोथा, देवदारु, प्र. सं. ५०१३ “ महा वासादि काथः" पाठा. इन्द्रजौ और काली मिर्च समान भाग ले कर देखिये। क्वाथ बनावें। (६५२२) विडङ्गादिक्वाथः (१) यह क्वाथ शोथातिसारको नष्ट करता है। (मै. र. । प्रमेहा. ; हा. सं. । स्था. ३ अ. ३१) । (६५२५) विडङ्गादिक्वाथः (४) विडङ्गसर्जार्जुनकटफलानां __(यो. र. । प्रमे.) कदम्बरोधासनवृक्षकाणाम् । | विडारजनीयष्टीनागरगोक्षुरैः कृतः । जलेन क्वाथश्च हितो नराणां कफप्रमेहेण सदातुराणाम् ॥ | कषायो मधुना हन्ति प्रमेहान्दुस्तरानपि ॥ बायबिडंग, शालवृक्षकी छाल, अर्जुनकी | । बायबिडंग, हल्दी, मुलैठी, सेांठ और गोखरु छाल, कायफल, कदम्ब, लोध और असनावृक्षकी समान भाग ले कर क्वाथ बनावें । छाल समान भाग ले कर क्वाथ बनावें। इसमें शहद मिला कर पीनेसे भयंकर प्रमेह यह काथ कफज प्रमेहको नष्ट करता है। भी नष्ट हो जाते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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