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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धूपप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः (५८१५) यष्ट्यादिलेपः (३) | रसौत समान भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर (शा. ध. । ख. ३ अ. ११) पानीके साथ पीस लें। यष्टीन्दीवरमृद्वीकातैलाज्यक्षीरलेपनैः । __इसका नेत्रों के बाहर लेप करनेसे हर प्रकाइन्द्रतः शमं याति केशाः स्युः सघनाः दृढाः ॥ | रको नेत्र-पीड़ा नष्ट होती है । मुलैठी, कमल और मुनक्का १-१ भाग ले ___ (५८१७) यष्टयादिलेपः (५) कर सबको एकत्र मिला कर अत्यन्त बारीक पीस (वृ. मा. । शोथा. ) कर उसमें १-१ भाग तेल, घी और दूध मिला| यष्टीदुग्धतिलैलेपो नवतीतेन संयुतः । कर लेप करनेसे इन्द्रलुप्त नष्ट होता और केश घने | शोथमारुष्करं हन्ति वृन्तैः शालदलस्य वा ॥ तथा दृढ़ होते हैं। मुलैठी और तिल समान भाग लेकर दोनोंको (५८१६) यष्टयादिलेपः (४) । एकत्र मिला कर दूधके साथ अत्यन्त बारीक पीस लें। (व. से. । नेत्र रोगा.) इसे नवनीत में मिला कर लेप करनेसे यष्टीगैरिकसिन्ध्रत्यदा:तायः समांशकैः। भिलावेकी सूजन नष्ट हो जाती है। जलपिष्टैबहिर्लेपः सर्वनेत्ररुजापहः ॥ शाल वृक्षके पत्तोंके डण्ठलोंका लेप करनेसे मुलैठी, गेरु, सेंधा नमक, दारुहल्दी और भी भिलावेकी सूजन नष्ट हो जाती है। इति यकारादिलेपप्रकरणम् -DAY अथ यकारादिधूपप्रकरणम् (५८१८) यवादिधूपः (१) - कर स्राव और तीव्र वेदना युक्त वातज बणोंको ( वृ. यो. त. । १११.) इसकी धूनी देनी चाहिये। (५८१९) यवादिधूपः (२) वाताभिभूतान्सास्रावान्धूपयेदुग्रवेदनान् । (वैद्यामृत.) यवाज्यभूर्जमदनश्रीवेष्टकमुराहयैः ॥ यवसर्पपरकशिवायचाजतुनिम्बाज्यभवं प्रधृपनम् जौ, भोजपत्र, मैनफल, श्रीवेष्ट, और देवदारु | ज्वरनाशकरं परं स्मृतं विविधोपायकरैश्चिसमान भाग ले कर चूर्ण बनावें । इसे धीमें मिला | कित्सकैः॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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