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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१० www.kobatirth.org भारत-‍ - भैषज्य रत्नाकरः इसके सेवनसे क्षय, कास, अम्लपित्त, स्वास और कण्डु (खुजली) का नाश होता है । इसे — पुष्टिके लिये सेंभलके रसके साथ; कफज रोगोंमें काली मिर्चके चूर्णके साथ; शूल और परिणाम शूल में घी तथा शहद के साथ; स्वरभंगमें गिलोय और जीरेके साथ; पित्तज रोगों में सेंभलके रसके साथ और अन्य रोगोंमें रोगोचित अनुपान के साथ सेवन कराना चाहिये । यह रस दुस्साध्य रोगों को भी शीघ्र ही नष्ट कर देता है तथा इसके अभ्याससे शरीर हाथी के समान बलशाली हो जाता है । अपथ्य - तेल, कमल, वेल और खटाई । ( मात्रा - १ - रत्ती । ) (५५६१) महामृत्युञ्जयलौहम् (रसें. सा. सं.; भै, र.; र. रा. सु. । प्लीहा ) शुद्धमृतं समं गन्धं जारिताभ्रं समं समम् । गन्धकाद्विगुणं लौहं मृतताम्रश्चतुर्गुणम् ॥ द्विक्षारं टङ्कणविडं वराटमथ शङ्खकम् । चित्रकं कुनटीतालकटुकीरामउन्तथा ॥ रोहितकन्त्रिवृच्चिश्वा विशालाधत्रमङ्कोटम् । अपामार्ग तालमूलं मल्लिका च निशायुगम् ॥ कानकन्तुत्थकञ्चैव यकृन्मदैं रसाञ्जनम् । एतानि समभागानि चूर्णयित्वा विभावयेत् ॥ आर्द्रकस्वरसेनैव गुडूच्याः स्त्ररसेन च । मधुः कुडवैर्भाव्यं वटिका मामात्रतः || अनुपानं प्रदातव्यं बुद्धवा दोषानुसारतः । भक्षयेत्प्रातरुत्थाय सर्वरोगकुलान्तकम् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ मकारादि प्लीहानं ज्वरमुग्रञ्च कासश्च विषमज्वरम् | चिरजं कुलश्चैव श्लीपदं हन्ति दारुणम् ॥ रोगानीकविनाशाय धन्वन्तरिकृतं पुरा । मृत्युञ्जयमिदं लौहं सिद्धिदं शुभदं नृणाम् || शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक और अभ्रक भस्म १ - १ भाग; लोह भस्म २ भाग; ताम्र भस्म ४ भाग; तथा जवाखार, सज्जी खार, सुहागेकी खील, बिड लवण, कौड़ी भस्म, शंख भस्म, चित्तामूलका चूर्ण, शुद्ध मनसिल, शुद्ध हरताल, कुटकीका चूर्ण : भुनी हुई हींग, रोहितक ( रुहेड़े ) की छाल, निसोत, इमलीकी छाल, इन्द्रायणकी जड़, धव, अंकोटकी जड़, अपामार्ग (चिरचिटा ), ताल मूली, मल्लिका, हल्दी, दारु हल्दी, धतूरे के शुद्ध बीज, शुद्र तूतिया, यकृन्मर्द ( रुहेड़ा मूल* ) और रसौत १ - १ भाग लेकर सबको १-१ दिन अदरक और गिलोय के रसमें घोटकर १ कुडव (आवइयकतानुसार) शहद में खरल करके १-१ माशेकी गोलियां बना ले I इन्हें प्रातःकाल यथोचित अनुपान के साथ सेवन करने से तिल्ली, उम्र ज्वर, खांसी, विषमज्वर तथा पुराना और वंशानुगत स्लीपद नष्ट होता है । भै. र. व. में (१) टंकण ( सुहागे ) के स्थान में सैंधव है । (२) फूलप्रियंगु, इन्द्रजौ, हर्र, अजमोद और reater अधिक है । (३) धतूरेके स्थान में शरपुंखा है । (४) मधु आधा कुडव है | * सरफोका भी ले सकते हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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