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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [मकारादि (५०३४) माषादिक्वाथः __(५०३७) मुद्गयूषयोगः (व. से. । वातघ्या.; भा. प्र. । म. खं. वातव्या.; (व. से. । स्त्रीरोगा.) वृ. यो. त. त. । ९०; वृ. मा. । वाता.) वह्नौ तप्तेन लोहेन मुद्गयूषं सुवापितम् । मापात्मगुप्तामैरण्डशृतं वाटयालकं तथा । पीत्वेवं मूतिका नारी सर्वव्याधीन्व्यपोहति ॥ हिङ्गुसन्धवसंयुक्तं पक्षाघातं विनाशयेत् ॥ ___ लोहेको अग्निमें तपाकर मूंगके यूपमें बुझावें उड़द, कौंचके बीज, अरण्डमूल और खरैटी यह यूष प्रसूता स्त्रीको पिलानेसे उसके समस्त समानभाग लेकर काथ बनावें। | रोग नष्ट हो जाते हैं। इसमें सेंधानमक और हींग मिलाकर पीनेसे (५०३८) मुद्गादिकषायः (व. से. । छर्दि.) पक्षाघात का नाश होता है। विदलानि च मुद्गानां पिप्पल्यश्चैव कुट्टिताः । (५०३५) माहिषक्षीरमूत्रोपयोगः आशु तत्सलिलं पेयं समधुच्छर्दिनाशनम् ॥ (ग. नि. । उदररोगा. १२) ___मूंगकी दालके काथमें पीपलका चूर्ण तथा सक्षीरं माहिषं मूत्रं निराहारः पिबेन्नरः । शहद मिलाकर पीनेसे छर्दि (वमन) तुरन्त रुक शाम्यत्यनेन जठरं सप्ताहादिति निश्चयः ॥ जाती है। प्रातः काल खाली पेट भैसके दूधमें भैंसका । (पीपलका चूर्ण १ माशा शहद २ तोले ।) मूत्र मिलाकर पीनेसे १ सप्ताहमें उदररोग अवश्य (५०३९) मुद्गादिकषायः नष्ट हो जाता है। (वृ. नि. र. । छर्दि.; व. से. । अतिसारा., छर्थ.; (इस प्रयोगकालमें अन्न पानादिका त्याग यो. र. छर्दि.; वृ. यो. त. । त. ८३) करना चाहिये । यह योग शोथोदरमें उपयोगी है) कषायो भृष्टमुद्गानां सलाजमधुशर्करः। (५०३६) मुण्डितिकायोगः र्यतीसारदाहन्नो ज्वरघ्नः संप्रकाशितः ॥ (ग. नि. । शिरोरो.) मूंगको भाड़में भुनवाकर उसका क्वाथ बनावें । पीत्वा मुण्डितिकोत्थं स्वरसं मरीचावचूर्णितं इस क्वाथमें धानकी खील, शहद और चोष्णम्। खांड मिलाकर पिलानेसे छर्दि, अतिसार, दाह और भक्तादौ सप्ताहात्सूर्यावर्धिभेदको हन्यात् ॥ । ज्वरका नाश होता है । गोरखमुण्डीके स्वरसको गरम करके उसमें काली । (५०४०) मुद्गादिकाथः मिर्च का चूर्ण मिलाकर भोजनके पहले सेवन करनेसे (ग. नि. । ज्वरा.; वृ. नि. र. । पित्तज्वर.; सूर्यावर्त और अविभेदक (आधासीसी) का नाश ब. से. । ज्वरा.) होता है। मुद्रानामञ्जलिं पूर्णां यष्टीमधुकसाधिताम् । पथ्य-दूध भात । पाक्यं शीतकषायं वा पिबेपित्तज्वरापहम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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