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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कषायप्रकरणम् चतुर्थों भागः (५०२९) मातुलुङ्गादिकाथः (२) । (५०३२) मालतीमूलयोगः (व. से.। ज्वरा.; वृ. नि. र. । कफवर.) । (ग. नि. । अमरो.; रा. मा. । अ. १५) मातुलुङ्गशिफाविश्वकायस्थाग्रन्थिकोद्भवम् । ग्रीष्मोत्खातं मालतीमूलमाजे कफज्वरेषु सक्षारं पाचनं वा कणादिकम् ॥ ___ क्षारे सिद्धं शर्कराचूर्णमिश्रम् । ___ बिजौ रे नीबूकी जड़, सोंठ, हर्र और पीपला- पीतं सबो मूत्रसंरोधजातां मूलके क्वाथमें जवाखार मिलाकर पिलाने या हन्यात्पीडां पातयेदश्मरों च ॥ कणादि क्वाथ पिलाने से कफज ज्वर नष्ट ग्रीष्मकालमें उखाड़ी हुई मालती को जड़को होता है। बकरीके दूध में पका कर उसमें मिश्री डाल कर (५०३०) मातुलुङ्गादिकाथः (३) । पीनेसे मूत्र रोकनेसे उत्पन्न हुई पीड़ा नष्ट होती (व. से. । ज्वरा.; वृ. नि. र. । सन्निपात.) और पथरी निकल जाती है। मातुलुङ्गऽश्मभिदिल्यव्याघ्रीपाठारुबूकजः। ( मालती की जड़ २ तोले, दुध १६ तोले, क्वाथो लवणमूत्राढयोऽभिन्यासानाहशूलनुत् ॥ पानी ६४ तोले । एकत्र मिला कर पानी जलने तक पकावें।) बिजौ रेकी जड़, पखानभेद, बेलको छाल, .. (५०३३) माषबलादियोगः कटेली, पाठा और अरण्डमूल समान भाग लेकर काथ बनावें । (ग. नि. । वातरोगा. १९; वृ. मा. । वाता.; इसमें सेंधा नमक और गोमूत्र मिलाकर पि च. द. । वातव्या. अ. २२; र. र. । वातव्याः ; लानेसे अभिन्यास सन्निपात, अफारा और शूल यो. र. । पक्षाघात.) नष्ट होता है। माषबलाशुकशिम्बीकत्तृणरास्नाश्वगन्धोरुबूकाणाम् क्याथो नस्यनिपीतो रामठलवणान्वितः कोष्णः (५०३१) मातुलुङ्ग्यादियोगः अपहरति पक्षवातं मन्यास्तम्भं सकर्णनादरुजम् । (यो. र.; वृ. नि. र. । रक्तपित्त.) दुर्जयमदितवात सप्ताहाजयति चावश्यम् ।। मूलानि पुष्पाणि च मातुलुङ्ग्याः __ उड़द, खरैटी, कौंचके बीज, कत्तग, रास्ना, समं पिबेत्तन्दुलधावनेन। असगन्ध और अरण्डमूल समान भाग लेकर क्वाथ घ्राणप्रवृत्ते जलमाशु देयं बनावें। सशकरं नासिकयोः पयो वा ॥ इस मन्दोष्ण क्वाथमें जरासा सेंधा नमक बिजौ रेकी जड़की छाल तथा फूलोंके और हींग मिला कर नासिका द्वारा पीनेसे कल्कको चावलों के धोबनके साथ सेवन करनेसे | पक्षाघात (अधरंग), मन्यास्तम्भ, कर्ण पीड़ा, कर्णअथवा खांडके शर्बत या दूधकी नस्य लेनेसे नक- नाद, और कष्ट साध्य अर्दित (लकवा) १ सप्ताहमें सीर बन्द होती है। अवश्य नष्ट हो जाता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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