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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आसवारिष्टमकरणम् ] चतुर्थों भागः (५३२९) मध्वरिष्टः | (५३३०) मध्वासवः (१) (च. स. । चि. अ. १५ ग्रहणी.; (च. सं. । चि. अ. १५ ग्रहणी.; वा भ. । ___वं. से.। ग्रहणी.) चि, अ. १०; वं. से. । ग्रहणी. ) नवे पिपलिमध्वाक्ते कलसेऽगुरुधुपिते ।। द्रोणं मधूकपुष्पाणां विडङ्गानां ततोऽर्धतः । मध्वाढकं जलसमं चूर्णानीमानि दापयेत् ॥ | चित्रकस्य ततोऽध स्यात् तथा भल्लातकाढकम् ॥ कुडवार्ध विडङ्गानां पिप्पल्याः कुडवं तथा । मंजिष्ठा त्रिपलं चैव विद्रोणेऽपां विपाचयेत् । चतुर्थकांशां त्वक्षीरी केशरं मरिचानि च ।। द्रोणशेषे तु तच्छीतं मध्वर्धाढकसंयुतम् ।। त्वगेलापत्रकशटीक्रमुकातिविपाधनम् । एलामृणालागुरुभिश्चन्दनेन च रूषिते । हरेण्वेलुकतेजोहापिप्पलीमूलचित्रका ॥ कुम्भे मासस्थितं जातमासवं तं प्रयोजयेत् ॥ कार्षिकांस्तान स्थित मासमत ऊर्ध्वं प्रयोजयेत् । ग्रहणी दीपयत्येष वृंहणः कफपित्तजित् । मन्दं सन्दीपयत्यग्निं करोति विषमं समम् ॥ शोथं कुष्ठं किलासं च प्रमेहांश्च प्रणाशयेत् ॥ हृत्पाण्डुग्रहणोरोगकुष्ठार्शःश्वयथुज्वरान् । ___महुवेके फूल १६ सेर, बायबिडंग ८ सेर, वातश्लेष्मामयांश्चान्यान्मध्वरिष्टो व्यपोहति ॥ " चीतामूल ४ सेर, शुद्ध भिलावा ४ सेर और मजीठ __ शहद ८ सेर, पानी ८ सेर, बायबिडंग १० १५ तोले ( वाग्भटके मतानुसार ४० तोले ) तोले, पीपल २० तोले तथा बंशलोचन, नागकेसर लेकर सबको अधकुटा करके ९६ सेर पनीमें और काली मिर्च ५-५ तोले एवं दालचीनी, पकावें और ३२ सेर पानी रहने पर छानकर, ठण्डा इलायची, तेजपात, कचूर, सुपारो, अतीस, नागर करके, उसमें ४ सेर शहद मिलादें और एक मटमोथा, रेणुका, एलबालुक, तेजबल, पीपलामूल केमें इलायची, खस, अगर और सफेद चन्दनका और चीतामूल ११-१॥ तोला लेकर कूटने योग्य लेप करके उसमें इसे भरकर उसका मुख बन्द चीजोंको कूट लें और फिर शहद में पीपलका चूर्ण करके रख दें। तथा १ मास पश्चात् निकालकर मिलाकर एक नये मटकेमें लेप कर दें तथा उसे छान लें। अगरकी धूनी दे कर उसमें उपरोक्त समस्त चीजें ___ यह आसव ग्रहणीको दीप्त करता तथा कफ, भरकर उसका मुख बन्द करके रख दें और एक | पित्त, शोथ, कुष्ठ, किलास आर प्रमेहका नाश मास पश्चात् छानकर काममें लावें । करता एवं कामशक्तिको बढ़ाता है । इसे सेवन करनेसे मन्दाग्नि, प्रदीप्त और विषमाग्नि समान हो जाती है। इसके अतिरिक्त यह (५३३१) मध्वासवः (२) अरिष्ट (आसब) हृद्रोग, पाण्डु, ग्रहणी दोष, कुष्ट, (चरक । चि. अ. ७ कुष्ठ.) अर्श, ज्वर, शोथ और अन्य वातकफज रोगोंको खदिरसुरदारुसारं श्रपयित्वा तद्रसेन तोयार्थम् । भी नष्ट करता है। क्षौद्रप्रस्थे कार्यः कार्ये ते चाष्टपलिके च ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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