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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२४ www. kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः कल्क- नीमकी छाल, चिरायता, गोखरू, अनार, रेणुका, बेलकी छाल, देवदारु, दारूहल्दी, नागरमोथा, हर्र, बहेड़ा, आमला, तगर, मुनक्का, जानकी छाल, आमकी छाल और हर्र । सब समान भाग मिश्रित २० तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें । [[मकारादि पैर और हाथ, यह तेल समस्त मूत्ररोग; सिरकी दाह, दुर्बलता तथा कृशताको नष्ट करता है । इति मकारादितैलप्रकरणम् । (५३२७) मण्डूरारिष्टः ) ( र. का. घे. यो. र. । कामला; ग. नि. । आसवा. मण्डूरस्य तु शुद्धस्य तुलार्धं परिकल्पितम् । लोहस्य पत्राणि तिलोत्सेधप्रमाणतः ॥ गुडाजीर्णा पंचाशत् कोलप्रस्थत्रयं तथा । निकुम्भचित्रकाभ्यां च पले द्वे द्वे सुचूर्णिते ॥ पिप्पलीनां विडङ्गानां कुडवं कुडवं पृथक् । श्रीश्चापि त्रिफला प्रस्थान जलद्रोणे समावपेत्॥ मास्थितो धान्ये पेयोरिष्टः प्रमाणतः । दोषनिर्हन्ता पाण्डुरोगं नियच्छति || कृमी शसि कुष्ठं च कासश्वासकफामयान् । ris free माहूर : शोफपाण्ड्वामयापहः ॥ अथ मकाराद्यासवारिष्टप्रकरणम् शुद्ध मण्डूर ३ सेर १० तोळे, शुद्ध लोह चूर्ण ३ सेर १० तोले, पुराना गुड़ ३ सेर १० तोले, बेरीकी जडकी छाल ३ सेर; दन्तीमूल और चीतेकी जड़ १० - १० तोले; पीपल और बायबिडंग २०२० तोले और हर्र, बहेड़ा तथा ओमला १-१ सेर लेकर कूटने योग्य चीजोंको कूटकर सबको क्षीणेन्द्रिय, नष्ट - शुक्र और अधिक स्त्री समागम के कारण क्षीण हुए पुरुषोंके लिये यह तैल बल्य, वृष्य और आयु स्थापक है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ सेर पानी में मिलाकर चिकने मटके में भरकर उसका मुख बन्द करके उसे अनाजके ढेर में दबा दें और १५ दिन पश्चात् निकालकर छान लें । यह अरिष्ट (आस) उर्ध्व तथा निम्न दोषनाशक है एवं पाण्डु, कृमि, अर्श, कुष्ठ, खांसी, श्वास, कफरोग, और शोथका नाश करता है । (५३२८) मधुशुक्तयोगः जम्बीराणां फलरसः प्रस्थैकः कुडवोन्मितम् । ( वं. से.; ग. नि.; यो. र. । कर्णरो. ) माक्षिकं तत्र दातव्यं पिप्पली च पलोन्मिता ॥ घृतभाण्डे विनिःक्षिप्य धान्यराशौ निधापयेत् । मासेन तज्जातरसं मधुशुक्तमुदाहृतम् ॥ जम्बीरी नीबू का रस २ सेर, शहद आधा संर और पीपलका चूर्ण ५ तोले लेकर सबको एकत्र मिलाकर घृतके पात्र में भरकर उसका मुख बन्द करके उसे अनाजके ढेर में दबा दें और १ मास पश्चात् निकालकर छान लें । | इसको मधुशुक्त कहते हैं 1 ( यह आरतैल में पड़ता है | ) For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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