SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 442
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारत-भैषज्य - [ ४३० ] [ तकारादि (२६०१) ताम्रशुद्धि: ( भा. प्र. ख. १धातुशो.) | सेवन करने से सब प्रकार के स्थावर विष ( कन्द मूल खनिजादि विष ) नष्ट होते हैं । (२६०४) ताम्रादिप्रयोगः ( र. र. । शूला. ) मृतताम्रं पलैकन्तु चिञ्चाक्षारपलाष्टकम् । हिङ्गुहरीतकीव्योषं करञ्जवीजचोरकम् ॥ प्रत्येकं पलमात्रन्तु चूर्ण कोष्णोदके पिबेत् । कर्षैकं शूलशान्त्यर्थ सर्वोपद्रवसंयुतम् ॥ ताम्र भस्म ५ तोले, इमलीका क्षार ४० तोल तथा हींग, हर्र, त्रिकुटा, करञ्जबीज और चोरकका चूर्ण ५-५ तोले लेकर सबको एकत्र खरल कर लीजिए | पत्तलीकृतपत्राणि ताम्रस्याग्नौ प्रतापयेत् । निषिश्चेत्तप्ततप्तानि तैले तक्रे च काञ्जिके ॥ गोमूत्रे च कुलत्थानां कषाये च त्रिधा त्रिधा । एवं ताम्रस्य पत्राणां विशुद्धिः सम्प्रजायते ॥ तांबे पत्रोंको अग्निमें खूब तपा तपाकर तैल, तक्र, काञ्जी गोमूत्र ओर कुलथीके काथमें ३- ३ बार बुझानेसे वह शुद्ध हो जाते हैं । (२६०२) ताम्रशोधनम् (र.र.स. पूर्व. अ. ५) ताम्रनिर्मलपत्राणि लिवा निम्त्रम्बुसिन्धुना । मावा सौवीरकक्षेपाद्विशुध्यत्यष्टवारतः ॥ ॥ निम्बम्पटुलिप्तानि तापितान्यष्टवारकम् । विशुद्धयन्त्यर्कपत्राणि निर्गुण्ड्या रसमज्जनात् तांबेके उत्तम पत्रपर नीबूके रसमें पिसे हुवे सेंधा नमकका लेप करके उन्हें अग्निमें तपाइए जब खूब लाल हो जायं तो उनपर काञ्जी छिड़क कर उन्हें ठण्डा कर दीजिए । इसी प्रकार ८ बार करनेसे ताम्रपत्र शुद्ध हो जाते हैं । उपरोक्त विधि से सेंधा नमकका लेप करके, अग्नि में तपाकर ८ बार संभालके रसमें बुझाने से भी ताम्रपत्र शुद्ध हो जाते हैं । (२६०३) ताम्रसुवर्णयोगः ( वै. म. र. । पटल. १९ लीड : क्षौद्रसितायुक्तश्चूर्णस्ताम्रसुवर्णयोः । स्यात्स्थावरविषध्वान्त सन्तानैक दिवाकरः ॥ ताम्र भस्म और स्वर्ण भस्म समान भाग लेकर एकत्र खरल करके मिश्री और मधुमें मिलाकर - रत्नाकरः । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir इसमें से 21 तोल औषध मन्दोष्ण जलके साथ पीने से उपद्रवयुक्त शूल भी शान्त हो जाता है। ( नोट- हींग सूनकर डालनी चाहिए । व्यवहारिक मात्रा - ६ माशे । ) (२६०५) ताम्रामृताख्यं रसायनम् ( वं. से. । रसायन ० ) गन्धकं जीर्णताम्रञ्च सूतकञ्च समांशकम् । तण्डुलीयकमूलस्य रसे हि लवणस्य च ॥ वस्त्रे तत्पोटलीं वद्ध्वा वेष्टयेत्तां सुपिष्टया ॥ लोहपात्रे पचेत्तावद्यावत्तद्गुलिकायते । आमलक्या ततः पक्का सर्पिषा मृदुवह्निना । शर्करामधुसर्पिभ्यामालोड्य विधिवल्लिहेत् ॥ नारिकेलपयः पेयं तक्रं चानु यथाविधिः । आचरेद् ब्रह्मचर्यन्तु हितार्थ वैद्यवत्सलः ॥ दुर्नामप्लीह पाण्डुत्वज्वरकासादिकान्गदान् । अग्निमान्य कृतान्सर्वान्निहन्यात्क्षिप्रमेव तु ॥ शुद्ध गन्धक, ताम्र भस्म और शुद्ध पारद समान भाग लेकर सबकी कजली करके चौलाईकी For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy