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रसमकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[४०५]
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(२५६३) ताप्यादिरसायनम्
पिण्डी बनाकर उसके ऊपर त्रिफलेका महीन चूर्ण (र. र. स. । उ. खं. अ. २६)
लपेटकर उसे मन्दाग्निपर घृतमें पकाइये; जब
त्रिफलेका रंग लाल हो जाय तो निकाल लीजिए ताप्याभ्रकत्रिकटुतुत्यशिलाजकान्त
और ठण्डा होनेपर पीसकर रखिये । मङ्कोल्ललोहमलटऋणसैन्धवश्च।। भृङ्गीरसेन वटिकांश्च मसूरमात्रान्
इसे शहद और धीमें मिलाकर चाटकर ऊपर खादेद्रसायनवरं सकलामयनम् ॥
से नारियलका पानी पीना चाहिये । सोनामक्खीभस्म, अभ्रकभस्म, त्रिकुटा इसके सेवनसे पाण्ड, खांसी, विषमज्वर, (सोंठ, मिर्च, पीपल), शुद्ध नीलाथोथा (तुत्थ), गुल्म और प्लीहारोग नष्ट होते हैं। शिलाजीत, कान्तलोहभस्म, अकोलमूल, मण्डर- (मात्रा-२-३ रत्ती। शहद २ तोले । भस्म, सुहागेकी खील और सेंधानमक समान भाग घी ६ माशे ।) लेकर भांगके रसमें घोटकर मसूरके दानेके बराबर (२५६५) ताम्रका गोलियां बना लीजिये।
(वं. से. । रसायना.; र. का. धे। ग्रह.) इन्हें यथोचित अनुपानके साथ सेवन करने
गन्धकस्य पलं प्रोक्तं रसस्य द्विपलं तथा। से समस्त रोग नष्ट होते हैं।
नैपालस्य विशुद्धस्य ताम्रस्य च पलं भवेत् ।। (२५६४) ताम्रका
| ततो गन्धाद्धेचूर्णेन तानं संयुज्य चूणेयेत् । (वं. से. । रसायन.; र. र. । रसा.; धन्वं.) शेषाई गन्धकं कृत्वा पारदं खल्लयेद्भिषक् ।। जीर्णतानं रसं चैव गन्धकञ्च मुचूर्णितम् ।। रसेन हस्तिशुण्ड्याश्च लोहपात्रे पचेच्छनैः । स्वर्णमाक्षिकमादाय धत्तुरकरसे पचेत् ॥ कृत्वा पङ्कसमं पाकं ताम्रेण सह योजयेत् ॥ यावत्पाकं यथा कृत्वा शास्त्रविन्मन्दवह्निना। तच्च गन्धकचूर्णेन सम्वेष्टय हविषा सह । त्रिफलापिण्डिकावेष्टय विधिवत्सर्पिषा पचेत् ॥ पाचयति भिषक्माज्ञः पाकविन्मृदुवहिना ।। ज्ञात्वा पाकं समुत्तार्य शीते निष्कास्य भक्षयेत्। आलोड्य मधुसपिभ्या भुक्त्वा तक्रं पिबेदनु । विमद्य मधुसर्पिभ्यां नारिकेलं पिबेदनु ॥ अग्निमान्धमजीर्णश्च ग्रहणीपाण्डुकामलाम् ।। पाण्डुरोगश्च कासं च ज्वरांश्च विषमांस्तथा। परिणामरुजं चाशु नाशेयेत्तु प्रयोजितम् ॥ गुल्मं प्लीहामयश्चैव विनाशयति भक्षणात् ॥ - शुद्ध गन्धक ५ तोले, शुद्ध पारा १० तोले
ताम्रभस्म, पारद, गन्धक और सोनामक्खी और शुद्ध नेपाली ताम्र ५ तोले लेकर प्रथम २॥ भस्म बराबर बराबर लेकर कज्जली करके धतूरके तोले गन्धक और ताम्रको एकत्र खरल कीजिये रसमें मन्दाग्नि पर इतना पकाइये कि पकते पकते और फिर शेष गन्धकको पारेके साथ मिलाकर गोली बनने योग्य हो जाय । तत्पश्चात् उसकी | कजली बना लीजिये। इस फजलीको लोहेके
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