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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir घृतप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [ ३७३ ] (२४५८)त्रिवृतादिघृतम् (भै. र. । वृद्धय.) चारगुने पानीमें पकाइये जब चौथा भाग पानी त्रिवृतामधुयष्टयम्बुपयोधरयमानिकाः।। शेष रहे तो छान लीजिए । तत्पश्चात् यह काथ श्यामाविदारीमिश्रेया पिप्पलीगिरिमल्लिका॥ | और इतना ही दूध तथा इससे चौथाई घी और घृतप्रस्थं पयःप्रस्थं दध्याढकसमन्वितम् ।। उतना ही अरण्डीका तैल लेकर सबको एकत्र शतावरीरसप्रस्थं सर्वाण्येकत्र सम्पचेत् ।। मिलाकर पकाइये । जब सब पानी जल जाय तो त्रिवृतादिघतश्चैतदन्त्रजान्निखिलान् गदान् । स्नेहको छान लीजिए। प्रमेहान् विंशतिंश्वासान् कुष्ठान्य सि कामलाम। इसमें शहद मिलाकर सेवन करनेसे कफज हलीमकं पाण्डुरोगं गलगण्डं तथार्बुदम् । गुल्म, कफ, वायु, मलावरोध, कुष्ठ, प्लीहा और विद्रधि व्रणशोथश्च हन्ति नास्त्यत्र संशयः ॥ विशेषतः योनिशूल नष्ट होता है। __ कल्क द्रव्य-निसोत, मुलैठी, सुगन्धबाला, (२४६०) त्रिवृताधं घृतम्(वं.से. यो.र.।उदर.) मोथा, अजवायन, काली निसोत, विदारीकन्द, पयस्यष्टगुणे सर्पिः प्रस्थं स्नुक्पयसापलम् । सौंफ, पीपल और कुड़ेकी छाल २-२ तोले.। घी त्रिवृतापलषट्केन सिद्धं जठरगुल्मनुत् । १ सेर, दूध १ सेर, दही १ सेर और शतावरका घी १ प्रस्थ (८० तोले), दूध ८ प्रस्थ, रस १ सेर । सबको एकत्र मिलाकर पकाएं। सेहुंड (थोहर) का दूध १ पल (५ तोले) और इसे सेवन करनेसे समस्त अन्त्ररोग ( अन्त्र निसोतका कल्क ६ पल । सबको एकत्र मिलाकर दूध जल जाने तक पकाएं। वृद्धयादि ), बीस प्रकारके प्रमेह, श्वास, कुष्ट, | इसके सेवनसे उदररोग और गुल्म नष्ट अर्श, कामला, हलीमक पाण्डु, गलगण्ड, अर्बुद, | विद्रधि और व्रणशोथ इत्यादि रोग नष्ट होते हैं। (२४६१) त्र्यूषणदिघृतम् (मात्रा-१ तोला तक ।) (चं. सं. । चि. । स्था. अ. २६; यो. र.।) (२४५९) त्रिवृतादिमिश्रकस्नेहः स्यात् त्र्यूषणं द्वे त्रिफले सपाठे (च. सं. । चि. अ. ५) निदिग्धिका गोक्षुरको बले द्वे । त्रिवृतां त्रिफलां दन्ती दशमूलं पलोन्मितम् । ऋद्धिस्सुटिस्तामलकी स्वगुप्ता जले चतुर्गुणे पक्ता चतुर्भागस्थितं रसम् ॥ मेदे मधृकं मधुकं स्थिराञ्च । सर्पिरेरण्डजं तैलं क्षीरश्चैकत्र साधयेत् । शतावरी जीवकपृश्निपण्य? स सिद्धो मिश्रकस्नेहः सक्षौद्रः कफगुल्मनुत् ॥ द्रव्यैरिमैरक्षसमैः सुपिष्टैः। कफवातविबन्धेषु कुष्ठप्लीहोदरेषु च। प्रस्थं घृतस्येह पचेद्विधिज्ञः प्रयोज्यो मिश्रकःस्नेहो योनिशूलेषुचाधिकम् ॥ प्रस्थेन दन्नस्त्वथ माहिषस्य ।। निसोत, हर्र, बहेड़ा, आमला, दन्ती और | मात्रां पलं चार्द्धपलपिचुम्बा दशमूल । १-१ पल (५-५ तोले) लेकर सबको ! प्रयोजयेन्माक्षिकसम्प्रयुक्तम् । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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